देहरादून- आज की रात के बाद कल सुबह जो सूरज देहरादून में उदय होगा वो उत्तराखंड राज्य की सत्रहवी सालगिरह के जश्न में शामिल होगा। लेकिन सूबसूरत गैरसैंण की पहाडियों पर उगने वाला सूरज गैरसैंण से सवाल करेगा”हला गैरसैंण अबरी दां क्या होळलू तेरू, हे लाटा तौन पूछि भी त्वै सणी कि नि, चुचा मैन सुणी त्वौंन फिर तेरी पीड़ा का पापड़ा उखाड़ना शुरू करयालिन लठ्याला ”
जी हां सियासत ने गैरसैंण को फुटबाल बनाकर रख दिया है। हाल ये है कि साल साल से चल रहे इस मैच का अब तक नतीजा नहीं निकला है। दरअसल भाजपा की पहली अंतरिम सरकार जनभावनाओं के प्रतीक गैरसैंण का मतलब समझ नहीं पाई और राजधानी चयन आयोग का गठन कर दिया। वहीं राज्य की पहली निर्वाचित कांग्रेस की तिवारी सरकार ने जले पर नमक नहीं बल्कि तेज़ाब छिड़कते हुए राजधानी चयन आयोग का कार्यकाल बढ़ा दिया। फिर दूसरी निर्वाचित सरकार भाजपा की बनी और बी.सी.खंडूड़ी ने राजधानी चयन आयोग से उसकी रिपोर्ट मांगी और आयोग की सेवा समाप्त कर दी। लेकिन अपने सात-आठ साल के कार्यकाल में राजधानी चयन आयोग ने किया क्या आज तक इसका पता आम उत्तराखंडियों को नहीं पता चल पाया।
पिछली हरीश रावत सरकार के कार्यकाल मे तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल गैरसैंण को लेकर आए दिन अपनी सरकार को असहज करते रहे। ऐसे मे ंहरीश रावत सरकार गैरसैँण पर कभी खुलकर नहीं बोल पाई लेकिन सरकार ने गैरसैंण में विधानभवन बनवाने की पहल कर दी। हालांकि गैरसैंण को किस रूप में सजाया जाएगा इस पर हरीश रावत और उनके विधायक कभी खुल कर नहीं बोले। लेकिन राज्य आंदोलनकारी रहे कुंजवाल गैरसैंण को स्थाई राजधानी का राग अलापते रहे।
इधर टीएसआर सरकार ने गैरसैंण को लेकर अपना रुख साफ किया है कि गैरसैंण को भाजपा ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाना चाहती है। जैसे ही सीएम रावत ने गैरसैँण पर अपना पक्ष रखा वैसे ही विपक्ष ने सरकार को कोसना शुरू कर दिया। हालांकि गैरसैंण के प्रति विपक्ष कितना ईमानदार है अभी यह स्पष्ट नहीं हो पाया है। वावजूद इसके पूर्वविधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल ने दो टूक कह दिया है कि गैरसैंण स्थाई राजधानी होनी चाहिए, ग्रीष्मकालीन राजधानी किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
राज्य आंदोलनकारियों की भी यही राय है, उनका कहना है छोटे प्रदेश मे दो राजधानियो का कोई तुक नहीं है। ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने से गैरसैंण महज एक सियासी पिकनिक स्पॉट बन जाएगा। खैर सबसे इतर बात तो ये है कि सीएम के गैरसैंण पर दिए बयान को सोशल मीडिया में क्षेत्रवाद की कसौटी पर कसना शुरू हो गया है। क्षेत्रीयता की सोच रखने वालों का तर्क हैं दोनों राजधानी एक मंडल में क्यों?
ऐसे में माना जा रहा है कि सियासत के माहिरोंं ने अबकी दफे जानबूझ कर ग्रीष्मकालीन का राग छेड़ा है ताकि दोनो मंडलों की जनता उलझी रहे । ऐसे में तय है कि जनता के तेवरों को देखते हुए सरकार गैरसैंण पर दिए अपने बयान पर कायम नहीं रह पाएगी और इसका ठीकरा जनता के सिर फोड़ देगी। यानि बेचार गैरसैंण गैर ही रहेगा और सरकार का सब्बी धाणी देहरादून बरकरार रहेगा।