देहरादून- एक ठेठ देशी कहावत है सांडों की लड़ाई में झुंडो का नाश। कुछ ऐसा ही आलम है देहरादून के उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय में। जहां आलाधिकारियों के अहम की लड़ाई के बीच अपने हितों के चलते सियासत भी कूद गई है।
इस झगड़े का सबसे ज्यादा खामियाजा मोटी फीस देकर दाखिला लेने वालों को भुगतना पड़ रहा है। गजब तो ये है कि सरकार और शासन तमाशा देखने के अलावा फिलहाल कुछ भी करने की न तो स्थिति में हैं और ना ही इस जंग को समझौते की टेबल पर खत्म करवाने में दिलचस्पी ले रहे हैं।
जबकि खुद सूबे के मुखिया तकनीकी शिक्षा मंत्रालय देख रहे हैं उनके सबसे विश्वासपात्र नौकरशाह ओमप्रकाश तकनीकी शिक्षा सचिव हैं। बावजूद इसके कुलपति पीके गर्ग और विश्वविद्यालय के अधीन संचालित महिला प्रौद्योगिकी संस्थान की डायरेक्टर अलकनंदा अशोक के अहम टकरा रहे हैं। इस लड़ाई में सबसे ज्यादा नुकसान उन पढ़ने वालों का हो रहा है जिन्होंने विश्ववद्यालय में दाखिला लिया है। क्योंकि एक पखवाड़े से ज्यादा का वक्त हो गया है और यूटीयू के गेट पर तालाबंदी हो रखी है।
कुलपति पी.के.गर्ग और अलकनंदा अशोक के साथ साथ एक तीसरा कोण भी इस लड़ाई में बन गया है। तीसरा एंगल बहार से सियासी दिख रहा है लेकिन गहराई से उतरने पर पता चलता है कि इनको न पढने वालों से मतलब है, न उन पढाने वालों से जिन्हें कुलपति पीके गर्ग ने गुमराह किया हुआ है। उन्हें सिर्फ मतलब है कि अपने पति से।
जी हां! यूटीयू कुलपति पी.के. गर्ग और स्वयत्तशासी संस्थान महिला प्राद्योगिकी संस्थान की डॉयरेक्टर अलकनंदा अशोक के बीच ठनी इस जंग का तीसरा एंगल भी चाहता है कि अपनी प्रतिनियुक्ति को 2018 तक बढ़वा चुकी अलकनंदा अशोक की जी.बी.पंत विशविद्यालय में वापसी हो जाए और वे अपने सियासी रसूख के दम पर अपने पति को WIT का निदेशक बनाने में कामयाब हो जांए।
तीसरा एंकल भाजपा से जुड़ा है भाजपा की प्रदेश महिला प्रवक्ता शोभना रावत स्वामी के पति अनुराग स्वामी भी मौजूदा वक्त मे जी.बी.पंत में प्रोफेसर हैं। उनके पास घुडदौड़ी इंजिनियरिंग कॉलेज के डायरेक्टर का अनुभव है। शोभना रावत दो आला पदाधिकारियों की जंग का फायदा उठाना चाहती हैं इसलिए यूटीयू में संविदा पर तैनात अध्यापकों और छात्रों के हितों को हवा देकर इसे सियासी रंग दे रही हैं।
हालांकि गोयल राज के पिछले अनुभव को देखते हुए शासन कतई नहीं चाहेगा कि किसी मर्द को महिला तकनीकी शिक्षण संस्थान का निदेशक बनाकर किसी को उंगली उठाने का मौका दिया जाए। गौरतलब है कि साल 2015 में जब प्रो.एस.के.गोयल WIT के निदेशक थे तब छात्राओं ने गोयल साब पर शाररिक,मानसिक और आर्थिक शोषण की तोहमत लगाई थी।
इसलिए शोभना रावत स्वामी इस लड़ाई को लंबा खींचना चाहती है ताकि सरकार की छीछालेदर हो और सरकार कुलपति पी.के.गोयल और WIT की मौजूदा निदेशक अलकनंदा अशोक के अहम की लड़ाई में दखल देने को मजबूर हो जाए। लेकिन हालात को देखते हुए ऐसा लगता नहीं कि सरकार ऐसा करेगी क्योंकि अलकनंदा अशोक पर भ्रष्टाचार का कोई दाग नहीं है और अब तक वे जो भी बात कर रही है सभी नियम काएदे और तर्क की कसौटी पर खरी हैं। सिवाए यूटीयू के गेट पर तालाबंदी के, जैसा कि उन पर आरोप लगाए जा रहे हैं कि तालाबंदी के लिए अलकनंदा अशोक जिम्मेदार हैं।
रसूखमंदों की इस लड़ाई में सबसे अहम सवाल ये है कि उन छात्र-छात्राओं का इसमें क्या कसूर है जिन्होने विश्वविद्यालय में अपने सुनहरे भविष्य के चलते दाखिला लिया है।