अल्मोड़ा के द्वाराहाट में दो साल पहले हाईप्रोफाइल यौन शोषण और मानसिक प्रताड़ना के मामले में न्यायालय ने खंड विकास अधिकारी रमेश चंद्र को बरी कर दिया है। साथ ही आरोप लगाने वाली महिला ग्राम पंचायत अधिकारी को झूठे साक्ष्य गढ़ने का आरोपी मानकर उसके खिलाफ नियमानुसार कार्रवाई करने की संस्तुति की है। न्यायालय ने विवेचना पर भी तल्ख टिप्पणी की है।
दरअसल, 14 मार्च 2015 को द्वाराहाट में तैनात महिला ग्राम पंचायत अधिकारी ने खंड विकास अधिकारी रमेश चंद्र पर यौन शोषण और मानसिक प्रताड़ना का आरोप लगाते हुए ब्लॉक परिसर में जहरीले पदार्थ का सेवन कर लिया था। इस हाईप्रोफाइल मामले ने राज्य के ग्राम पंचायत अधिकारियों को हड़ताल पर धकेल दिया था। इतना ही नही मामला विधानसभा में भी जोर-शोर से उठा था।
इस मामले में कथित रूप से पीड़ित ग्राम पंचायत अधिकारी के पति धीरेंद्र सिंह की प्राथमिकी पर बीडीओ रमेश चंद्र को जेल भी भेजा गया था। अपर सत्र न्यायाधीश अशोक कुमार ने 26 अगस्त को इस चर्चित केस पर अपना फैसला सुनाकर रमेश चंद्र को दोष मुक्त करार दिया।
साथ ही ग्राम पंचायत अधिकारी (महिला) के इस घटना से ही मुकर जाने पर फटकार लगाई है। फैसले में कहा गया है कि पीड़ित ने 164 के तहत दिए गए बयानों को अपना मानने से इंकार कर देने से अभियुक्त को बचाने या अनुचित लाभ प्राप्त करने की नीयत से पक्षद्रोह किया है।
इसे अत्यंत आपत्तिजनक और न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग मानते हुए अपर सत्र न्यायाधीश ने अभियुक्त को फंसाने के लिए झूठे साक्ष्य गढ़ने का दोषी मान उसके विरुद्ध कार्रवाई करने की संस्तुति की है। इसके लिए अपर सत्र न्यायाधीश ने 2005 में सुप्रीम कोर्ट के मिश्री लाल बनाम मध्यप्रदेश सरकार के फैसले का हवाला दिया गया है। अपर सत्र न्यायाधीश ने विवेचना अधिकारी की विवेचना पर भी सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने कहा है कि चिकित्सक द्वारा मेडिकल परीक्षण के दौरान लिए गए नमूनों की विधि विज्ञान प्रयोगशाला में भेजकर जांच नही कराई गई।