नैनीताल- यूं तो उत्तराखंड जब से अलग राज्य बना तब से कई घोटालों ने सुर्खियां बटोरी हैं। शुरूआती दौर में विधानसभा की साज-सज्जा के शक से लेकर मौजूदा दौर में आपदा घोटाला तक सुर्खियों में रही। हर चुनाव में घोटले बड़ा मुद्दा बने हैं और इनकी बदौलत सरकारें भी बनी हैं।
बहरहाल 2007 की भाजपा सरकार के दौर में जिस ढैंचा बीच घोटाले ने सुर्खियां बटोरी थी उसका जिन्न एक बार फिर बोतल से बाहर आ गया है। नैनीताल हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति केएम जोसफ और न्यायमूर्ति वीके बिष्ट की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए सरकार को चार सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने के आदेश दिए हैं।
नैनीताल हाईकोर्ट में दायर जनहित याचिका में कहा गया है कि साल 2006 में तत्कालीन सरकार ने ढैंचा बीज बाजार रेट से दुगने दामों पर जरूरत से अधिक खरीदा । साथ ही जिन ट्रकों से ये बीज उत्तराखंड आए सेल टैक्स महकमें में उन ट्रकों के बारे में कुछ भी दर्ज नहीं है।
जबकि सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत कृषि निदेशक ने जो सूचना दी थी वो जानकारी सेल टैक्स महकमें की जानकारी से मेल नहीं खा रही है। दरअसल सूचना में जिन ट्रकों से ढैंचा बीज उत्तराखंड लाने की जानकारी दी गई है, सेल टैक्स विभाग ने उन नंबरों के ट्रकों को उत्तराखंड में नहीं आना बताया है।
याचिका में ढैंचा बीज खरीद में भारी घोटाला होने का जिक्र करते हुए तत्कालीन कृषि मंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, कृषि सचिव ओमप्रकाश, कृषि निदेशक मदन लाल को पूरे मामले में लिप्त करार दिया है। साथ ही उपरोक्त के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है।
खंडपीठ ने मामले में सुनवाई करते हुए सरकार को चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। यहां उल्लेखनीय है कि कांग्रेस सरकार द्वारा गठित एक सदस्यीय जांच आयोग ने भी ढैंचा बीज खरीद में तत्कालीन कृषि मंत्री त्रिवेंद्र रावत समेत सचिव और कृषि निदेशक की भूमिका पर सवाल खड़े किए थे।