टिहरी – राज्य स्थापना दिवस के खूबसूरत पलों में बहुत सारी हकीकतें दिल भी दुखा रही हैं। ऐसी सच्चाइयों में एक ऐसा ही सच टिहरी जिले के घनसाली विधानसभा क्षेत्र की नैलचामी पट्टी के थारती गांव से भी है। जहां एक 70 साल की दादी के लाचार कंधों पर अपने 4 नाती-नातिनों को पालने जिम्मेदारी है।
दरअसल बच्चों के मां-बाप इस दुनिया में हैं ही नहीं। सात साल पहले मां को बीमारी लील गई उसके कुछ समय बाद पिता भी चल बसे। उम्र के आखिरी पड़ाव पर पहुंची सोना देवी के लाचार कंधों पर चार मासूम बच्चों की जिम्मेदारी आ गई।
संघर्ष तो जीवन का नाम है लेकिन इस जंग का कड़वा पहलू ये हैं कि बूढ़ी दादी के कंधे पर न केवल मासूम बच्चों की जिम्मेदारी है बल्कि उस कर्ज का बोझ भी है जो बेटे ने परिवार की माली हालत सुधारने के लिए बैंक से लिया था।
बेटा तो दुनिया से चला गया लेकिन सरकारी कर्ज का बोझ बुजुर्ग मां के कंधों पर छोड़ गया। जबकि दादी मां की माली हालत ऐसी है कि रहने को पहाड़ी शैली का टूटा-फूटा मकान जबकि रोजगार के नाम पर मामूली पहाड़ी जमीन और दुनिया छोड़ चुके बेटे की कर्ज से ली हुई भैंस।
भैंस का कर्ज अभी चुकता नहीं हुआ लिहाजा किश्त बाकी हैं। जबकि दादी के देने का कोई साधन नहीं। ऐसे में दादी के पास मौजूद बैंक की लोन वाली पासबुक बता रही है कि बैंक को दादी से भैंस के 40-45 हजार रूपए वसूलने हैं।
भला उम्र के इस पड़ाव में चार मासूम बच्चों को बोझ उठा रही दादी कैसे बैंक की किश्त चुकाएगी। अब हड्डियों में इतनी जान भी नहीं रही कि कुछ दिहाड़ी-मजूरी कर पाए और मासूम बच्चों की भी उम्र इतनी नहीं कि कोई उन्हें काम पर रख ले।
ऐसे में भैंस का लोन कैसे निबटेगा दादी अम्मा को यहीं चिंता सताए जा रही है। काश राज्य स्थापना दिवस तक ये खबर मुख्यमंत्री जी तक पहुंच पाती और गरीब दादी मां की परिस्थितियों को देखते हुए विवेकाधीन कोष की थैली से बैंक का कर्ज माफ हो जाता। अगर ये मुमकिन हो पाता तो स्थापना दिवस के दिन पहाड़ की बुजुर्ग मां के लिए इससे बड़ा तोहफा और क्या हो सकता था।
या फिर हम सभी उत्तराखंडी परिस्थितियों की मारी दादी के लिए रत्ती-रत्ती-पाई-पाई की आसान मदद से सेंटा क्लॉज बनने की कामयाब पहल नहीं कर सकते।