धनोल्टी,(सुनील सजवाण)- लोकतंत्र में लोक और तंत्र के बीच किस हद तक कि दरार आ चुकी है इसको समझाने के लिए धनोल्टी विधानसभा क्षेत्र की अलगाड़ नदी पर लटके उस पुल को देखकर लगाया जा सकता है जो थत्यूड विकासखंड को क्षेत्र से जोड़ता है। स्कूल-अस्पताल, बाजार जैसी जरूरी सहूलियतों से क्षेत्र की जनता को जोड़ता है।
अलगाड़ नदी में बने छनाण गांव के भूम्या और थानसारी गांव को आपस में जोड़ने वाले पुल पर साल 2013 की आपदा का कहर टूटा था। साल 2017 में चुनाव हुए यानि चार साल बाद भी पुल का एक सिरा अलगाड़ नदी में गिरा हुआ है। अधिकारियों का तो खैर गांवों से कोई रिश्ता-नाता नही है लेकिन जनप्रतिनिधियों ने भी इस पुल की जरूरत को नहीं समझा जो इलाके में वोटों की गुहार के लिए गए होंगे।
आज आलम ये है कि बच्चों को स्कूल जाना हो या बीमार को अस्पताल, आधी नदी में उतरकर टूटे पुल के छोर को पकड़ना पड़ता है। अपाहिज पुल तो आज भी जनता की मदद कर रहा है हालांकि जनता को बरसात में अपनी जान जोखिम में डालनी पड़ती है। ऐसे में जनता को कई किलोमीटर का सफर पूरा अलगाड़ नदी के दूसरे छोर अपनी जरूरत को पूरा करने पहुंचना पड़ रहा है।
बहरहाल बड़ा सवाल ये है कि इस पहाड़ी राज्य में पहाड़ की पीर को कौन समझेगा। उत्तराखंड में भी जब उत्तराखंडी बेबस और लाचार हों तो फिर इस राज्य का मकसद क्या है? सवाल ये भी है कि, अगर गांवों की तकलीफें यू ही नासूर बनती रही और हाकिम हों या हुक्मरान यूं ही नजरें फेरते रहे तो पलायन कोई नहीं रोक सकता। फिर चाहे सरकार सेल्फी मंगवा ले, या सलाह मांग ले।