टिहरी- बीते दिनों केंद्र सरकार से राज्य के समाजकल्याण सचिव को खत भेजा गया कि उत्तराखंड में सबसे ज्यादा फर्जी पेंशन के मामले हैं। कहा गया कि उत्तराखंड ने बिहार, राजस्थान और दिल्ली जैसे राज्यों को भी इस मामले में पछाड़ दिया है।
जबकि दूसरा पहलू ये है कि, उत्तराखंड के गांवों पर सरकारी बेरूखी के चलते उसका भूगोल भारी पड़ रहा है। पिछले सत्रह सालों में राज्य सरकारों ने इन बेबस गांवों की पीड़ा नहीं समझी है। नतीजा ये है कि बुनियादी सहूलियतों के आभाव में जीते गांवों के साथ छूत की बीमारी जैसा बर्ताव लगातार हो रहा है। जिसका खामियाजा आम बेबस ग्रामीण उत्तराखंडी भुगत रहा है।
टिहरी जिले का कांगड़ा गांव आज भी भिलंगना विकासखंड के दुर्गम गांवो में शुमार है। 8-9 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई चढ़ने के बाद कांगड़ा गांव पहुंचा जाता है। अभी इस गांव तक पहुंचने के लिए कोई सड़क नहीं है। लिहाजा सरकारी मुलाजिम और सरकारी योजनाओं का प्रबंधन इस गांव महज रस्मी तौर पर अदा किया जाता है।
जिला विधिक सेवा प्राधिकरण टिहरी की टीम जब कांगड़ा गांव पहुंची तो ग्रामीणों का दुखड़ा सुनकर पसीज गई। ग्रामीण ने बताया कि आधार बनाने वालों की गल्तियां का किस कदर उन्हें खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। न मनरेगा का भुगतान हो पा रहा है और न वृद्धावास्था और विधुवा पेंशन मिल रही है। किसी की डेढ साल से तो किसी की दो साल से पेंशन लटकी हुई है। ‘आधार’ कांगड़ा गांव के लिए आफत बन गया है।
‘आधार’ कार्ड के सुधारीकरण के लिए घनसाली जाना गांवों के गरीब-गुरबों के लिए बड़ी खर्चीली जंग बन गई है। सबसे ज्यादा तकलीफ गांव के उन दिव्यांगों को हो रही है जो सड़क के आभाव में आधार केंद्र तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। उससे भी ज्यादा दिक्कत उन दिव्यांगों के सामने आ खड़ी हुई है जो किसी तरह केंद्र तक पहुंच तो रहे हैं लेकिन आधार कार्ड के मसीहा उनके शरीर पर तमाम ऐसे खोट दिखा रहे हैं जिनकी वजह से उनका आधार नहीं बन सकता।
गांव की एक दिव्यांग महिला के दाहिने हाथ की तीन उंगलियां नहीं है लिहाजा आधार केंद्र से उसे टरका दिया गया। गांव का एक युवा ऐसा दिव्यांग है जो हाथ पांवों से लाचार है वो आधार केंद्र तक जा नहीं पा रहा लिहाजा उसकी पेंशन भी खतरे में है। जबकि गांवों मे बने आधारों का हाल ये है कि शायद ही कोई ऐसा आधार कार्ड हो जिसमें आधार बनाने वालों ने कोई गलती न कर रखी हो।
आधार पर नाम दर्ज करने वालों ने गलत दर्ज किए या दिव्यांगों के आधार कैसे बनेंगे इस बारे में सरकार ने नहीं सोचा तो इसमें बेचारे कांगड़ा गांव वालों की क्या गलती ! लिहाजा जरूरत है सरकार को ऐसे गांवों के बारे में कुछ करने की जिनकी व्यथा टिहरी जिले के कांगड़ा गांव से मेल खाती है।
उत्तराखंड ने पछाड़ा बिहार,राजस्थान और दिल्ली को