आशीष तिवारी। उत्तराखंड के सुदूर दूरस्थ इलाके में एक ऐसी नायाब तस्वीर बनाई जा रही है जो अपने बनने के बाद इस पूरे राज्य के किसानों की तकदीर को बदल कर रख सकती है। जिस जख्म और दर्द से उत्तराखंड के पर्वतीय इलाके गुजर रहें हैं उन जख्मों पर मरहम लगाया जा सकता है। उत्तराखंड के किसानों को फिर से हंसाया जा सकता है। पहाड़ों को फिर से बसाया जा सकता है।
ये खबर समुद्र तल से तकरीबन 3000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित घेस घाटी की है। देवाल से 35 किलोमीटर की दूरी पर त्रिशूल पर्वत की तलहटी में बसा है घेस गांव। तकरीबन छह किलोमीटर के दाएरे में फैले घेस गांव की आबादी अच्छी खासी है। घेस से आठ किलोमीटर आगे है हिमणी गांव। इन गांवों में ना बिजली है और ना ही मोबाइल का नेटवर्क आता है। देवाल से घेस और हिमणी जाने का रास्ता जब हम पहुंचे तो निर्माणाधीन मिला। कई जगहों पर आपको कच्ची सड़क मिलेगी।
इन दोनों गांवों में मुख्य रूप से किसान ही हैं। घेस और हिमणी के किसान पारंपरिक रूप से कुटकी और ओगल की खेती करते रहें हैं। इस खेती से होने वाली कमाई इन किसानों की आय का प्रमुख जरिया रही है लेकिन अब यहां की सूरत बदलने लगी है। खबर उत्तराखंड जब इस गांव में पहुंचा तो उसे अब खेतों में कुटकी और ओगल नहीं बल्कि मटर की फसल दिखी। दस गुनी आय बढ़ने से खुश किसान दिखे। दरअसल घेस और हिमणी के किसानों की तकदीर बदलने का दुरूह कार्य सुरेश चंद्र उर्फ पप्पू ने किया। आगे बढ़े इससे पहले ये जान लेना जरूरी है कि पप्पू हैं कौन।
पप्पू सब्जियों और फलों की आढ़त करने वाले एक कारोबारी हैं। पहाड़ों और किसानों से विशेष लगाव के चलते पप्पू पिछले तकरीबन 20 सालों से हिमाचल और उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों की खाक छानते रहें हैं। हिमाचल के कृषि मॉडल से प्रभावित पप्पू ने उसे उत्तराखंड में लागू करने की ठानी। हालांकि ये काम बेहद कठिन था लेकिन पप्पू ने हार नहीं मानी।
पप्पू ने 90 के दशक के आखिरी वर्षों में रवाई घाटी में पुरोला और आसपास के इलाकों में खेती में बदलाव की चुनौती खुद स्वीकार की। पप्पू ने रवाई घाटी की भौगोलिक परिस्थितियों के बारे में कृषि वैज्ञानिकों से चर्चा की। दुनिया में उन्नत खेती करने वाले देशों का अध्ययन किया। इसके बाद इलाके के किसानों को नकदी फसलों की खेती के लिए प्रेरित किया। पप्पू ने किसानों को टमाटर के उन्नत किस्म के बीज उपलब्ध कराए। पारंपरिक खेती कर रहे किसानों को नए सिरे से प्रयोग के लिए तैयार करना बेहद मुश्किल था लेकिन लगातार प्रयासों से पप्पू ने आखिरकार ये कर दिखाया। शुरुआती दौर में कुछ ही किसानों ने पप्पू के कृषि मॉडल पर भरोसा कर टमाटर की खेती शुरु की। एक – दो फसलों में बहुत कुछ बेहतर परिणाम नहीं मिला। हालांकि धुन के पक्के पप्पू ने उम्मीद नहीं छोड़ी। शुरुआती गलतियों से वो लगातार सीखते रहे। इसका सुखद परिणाम मिला।
दो तीन सालों बाद टमाटर की शानदार फसल ने किसानों के चेहरे पर खुशी ला दी। वहीं पप्पू की मेहनत भी सफल हो गई। इसके बाद इलाके के कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव आए। किसानों ने पप्पू से प्रेरणा लेकर टमाटर जैसी नकदी फसलों की खेती शुरु की। अब इस इलाके में बड़े पैमाने पर टमाटर की खेती हो रही है। खेती में आए इस बदलाव ने इलाके की आर्थिकी को बदल कर रख दिया है। स्थानीय लोगों की पर्चेजिंग पॉवर में बढ़ोतरी हुई है। रहन सहन पहले से बेहतर और सुख सुविधापूर्ण हुआ है। रवाई घाटी में खेती में क्रांतिकारी बदलाव लाने के बाद पप्पू किसान ने घेस घाटी का रुख किया।
घेस और हिमणी गांव में भी पप्पू को शुरुआती दौर में किसानों को खेती में बदलाव के लिए तैयार करने में मुश्किल हुई। हालांकि पप्पू कुछ प्रयोगधर्मी किसान तैयार करने में कामयाब रहे। कुछ युवा किसानों को साथ लेकर पप्पू ने दो साल पहले ये मुहिम शुरु की। शुरुआती दौर में घेस और हिमणी गांव की भौगोलिक परिस्थितियों की जांच हुई। कृषि वैज्ञानिकों से सुझाव लिए गए। सिंचाई व अन्य सुविधाओं का हाल परखा गया। स्थानीय लोगों की जरूरत के मुताबिक ये तय हुआ कि इलाके के लिए मटर की पैदावार सबसे फाएदेमंद रहेगी।
इसके बाद सबसे बड़ी चुनौती थी किसानों को बेहतर बीज उपलब्ध कराना। इस मामले में किसान पहले से ही धोखा खाए हुए थे। उन्नत किस्म के बीजों के नाम पर उन्हें घटिया किस्म के बीज सरकारी विभागों से उपलब्ध कराए गए थे। किसानों ने इस बात की तस्दीक भी की। सरकारी विभागों ने जो बीज उन्हें पहले उपलब्ध कराए थे उनसे फसल चौपट हो गई। इस गोलमाल ने किसानों का मनोबल तोड़ दिया था।
पप्पू ने किसानों की इस असमंजस की स्थिती को समझा। इसीलिए घेस के मौसम के मुताबिक मटर की फसल के लिए न्यूजीलैंड से बीज मंगाए गए और उन्हें किसानों को निशुल्क वितरित किया गया। बीजारोपण के बाद भी पप्पू स्थानीय किसानों के साथ लगातार लगे रहे। फसल को बीमारियों से बचाने के लिए भी पूरी सतर्कता बरती गई। इसका नतीजा ये हुआ कि शुरुआती साल में किसानों को पारंपरिक खेती की तुलना में दोगुने से अधिक का फाएदा हुआ जबकि दूसरे साल में ये फाएदा दस गुने तक पहुंच गया है। पप्पू की माने तो तीसरे साल से किसानों की आय में और इजाफा होगा और फसल भी बेहतर आएगी।
पप्पू ने इलाके में हो रही मटर की पैदावार को मंडी तक पहुंचाने की भी बेहतरीन व्यवस्था बनाई है। मटर को हल्दवानी की मंडी तक पहुंचाने के लिए इलाकाई मालवाहकों को जिम्मेदारी सौंपी गई। इस व्यवस्था से खेतों में पैदा फसल को तुरंत बाजार मिल जा रहा है। हल्दवानी से ये मटर देश के अन्य हिस्सों में बिक्री के लिए भेज दी जाती है। किसानों को फसल का मूल्य भी बेहतर और तुरंत मिल जा रहा है। इसके चलते घेस और हिमणी के लोगों का रहन सहन सुधरने लगा है। खेतों में अच्छी फसल पहाड़ से पलायन के डर को भी कम कर देगी।
खेती के जिस मॉडल को घेस और हिमणी में पप्पू ने लागू किया है वो मॉडल अगर पूरे राज्य में लागू हो तो उत्तराखंड की दशा दिशा दोनों बदल सकती है। पप्पू के खेती मॉडल को खुद त्रिवेंद्र सिंह रावत ने सराहा है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत खेती के इस मॉडल को देखने के लिए खुद हिमणी गांव पहुंचे। खेत में खुद मुख्यमंत्री ने मटर तोड़ी। पप्पू और किसानों की मेहनत से खुश मुख्यमंत्री ने हर संभव मदद का भरोसा दिया है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत अब इस मॉडल को धीरे धीरे पूरे राज्य में लागू करने की कोशिशों में लगे हैं। (घेस और हिमणी गांव से लौटकर)