विशेष संवाददाता। तो क्या वाकई बनारस ‘दर्द’ में है? भले ही कांग्रेस ने इस जुमले को सियासी नफा नुकसाने के लिहाज से उछाला हो लेकिन ये सवाल अब मौजूं हो चला है कि क्या जिस ‘दर्द’ की बात कांग्रेस कर रही है उसे बनारसी महसूस कर रहे हैं या नहीं। बनारस किसी भी रूप में किसी भी तरह की पहचान का मोहताज नहीं है और यही वजह रही कि कि बीते लोकसभा चुनावों में भाजपा के इलेक्शन फेस रहे नरेंद्र मोदी ने बनारस ने नामांकन दाखिल किया। उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर एक बार फिर से बनारस में राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। कांग्रेस ने भी सीधे मोदी के लोकसभा क्षेत्र में ही ताल ठोंकी है। अब ये सवाल लाजमी है कि कांग्रेस ने बनारस को ही क्यों चुना। दरअसल देखा जाए तो मोदी के वादों के मुताबिक बनारस में अभी काम नहीं हो पाया है। कांग्रेस इस बात को समझ गई है। कांग्रेस को लगता है कि यूपी में भाजपा को जवाब देने के लिए बनारस से मोदी पर निशाना साधने के अलावा कोई और बेहतर विकल्प नहीं है।
कांग्रेस ने काशी को क्योटो बना देने के नरेंद्र मोदी को वादे के साथ ही बनारस में आम लोगों से जुड़ी समस्याओं को भी भाजपा के खिलाफ प्रचार का हिस्सा बनाया है। कांग्रेस के थिंक टैंक ने बनारसी समाज के कई वर्गों को भी साधने की कोशिश की है। कांग्रेस ने ऐसे वीडियो तैयार कराए हैं जिनमें अलग अलग वर्गों के लोग केंद्र सरकार और नरेंद्र मोदी से अपनी नाराजगी जाहिर कर रहे हैं। बनारस में गंदगी, सड़क, गंगा जैसे मसलों को इस वीडियो को उठाया गया है। ये बात तय है कि अगर इस वीडियो या फिर इस तरह के इलेक्शन कैंपेन को आक्रामक रूप से बनारस में चलाने में कांग्रेस कामयाब हो जाती है तो ये बनारस के साथ साथ आस पास की विधानसभा सीटों पर बीजेपी के लिए परेशानी की वजह बन सकती है। बीजेपी के हर हर मोदी, घर घर मोदी के नारे का भी पलीता लग सकता है।
बनारस में सोनिया गांधी के रोड शो को देखकर अभी ये कहना मुश्किल है कि ये कांग्रेस के लिए फाएदेमंद साबित होगा। इतना जरूर है कि सोनिया के रोड शो में जबरदस्त भीड़ उमड़ी। इस भीड़ को वोट बैंक में तब्दील करना अब कार्यकर्ताओं के जिम्मे है। राजनीतिक गलियारों में सवाल ये भी है कि सोनिया के रोड शो में आई भीड़ कहीं ऐसा तो नहीं कि उसी दर्द से परेशान जिसकी नब्ज कांग्रेस ने पकड़ी है।