नैनीताल हाईकोर्ट के फैसले पर अमल होगा या सूबे की सरकार सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी !
सूबे के उन पशु पालकों का क्या होगा जो सदियों से बुग्यालों और जंगलों का इस्तमाल कर रहे हैं और उन्हें बचा भी रहे हैं ?
ब्यूरो-आज तक आप आपने बच्चों के ही अभिभावक देखे और सुने होंगे लेकिन आज से सूबे के ग्लेशियर, बुग्याल, झरने और जंगलों के एक नहीं छह अभिभावक होंगे।
नैनीताल हाईकोर्ट ने राज्य के ग्लेशियर, बुग्याल, झरने और जंगलों को गंगा और यमुना की तरह जीवित व्यक्ति का दर्जा दिया है। जबकि इनकी हिफाजत के लिए छह अभिभावक तैनात किए हैं।
जिनमें राज्य के मुख्य सचिव, निदेशक नमामी गंगे, गंगा स्वच्छता राष्ट्रीय मिशन के निदेशक ईश्वर सिंह, एकेडमिक निदेशक चंडीगढ़ ज्यूडिशियल एकेडमिक डा. बलराम गुप्ता, वरिष्ठ अधिवक्ता सुप्रीम कोर्ट एमसी मेहता तथा एडवोकेट जनरल उत्तराखंड को अभिभावक का दर्जा दिया है।
वरिष्ठ न्यायमूर्ति राजीव शर्मा एवं न्यायमूर्ति आलोक सिंह की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि गंगोत्री, यमुनोत्री सहित अन्य ग्लेशियरों, नदियों, जलधाराओं, जंगल, जलप्रपातों, झीलों, हवा, झरने, स्रोत, घास के मैदान आदि के भी वहीं मूल अधिकार होंगे, जो एक जीवित व्यक्ति को भारतीय संविधान ने दिए हैं। लिहाजा उन्हें नुकसान पहुंचाने वाले को उसी प्रकार का दोषी माना जाएगा है जो एक जीवित मानव को नुकसान पहुंचाने पर माना जाता है।
बहरहाल ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि विकास योजनाओं के नाम पर बने उन प्रोजेक्टों का क्या होगा जिनको जंगलों और झरनों से होकर गुजरना है। जैसे आल वेदर रोड़ और ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन, पंचेश्वर समेत दूसरी जल विद्युत परियोजनाओं को सरकार कैसे पूरा कर सकती है।
बहरहाल जिस तरह से उत्तराखंड का पर्यावरण बिगड़ रहा है उस लिहाज से तो माननीय न्यायालय ने शानदार स्वागत योग्य फैसला दिया है। लेकिंन माना जा रहा है कि सरकार हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में ठीक वैसे ही चुनौती देगी जैसे चीन जिलों में शराब बंदी को लेकर दी थी।