टिहरी(घनसाली)– जाने माने लेखक मिथलेश बारिया ने एक बेहद गंभीर कविता लिखी है जो विकास के लिए माई-बाप बन चुकी ठेकेदारी के दौर में बेहद सटीक बैठती है। मिथलेश ने लिखा है कि –
डामर, कंकरों, पत्थरों में थोड़ी ईमानदारी मिलाई जाए….
देश में सड़के… कुछ ऐसी बनाई जाएं…
इक जरा सी बारिश क्या आई…
सड़कें सब सरकारी हो गई…
गांव में आई है बाढ़, तो बच्चे खुश हैं इस बात से…
के आसमान में फिर हेलिकॉप्टर नजर आएगा
कुछ यही हाल है टिहरी जिले के घनसाली विकास खंड की 15 किलोमीटर लंबी सड़क का, जो प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत बनी है। सैंदुल, कौंती, बनगांव-किरेथ और पटुड़गांव को जोड़ने वाला ये मोटरमार्ग ‘मिथलेश बारिया’ की कविता का असल मर्म समझाता है। लगता है मिथलेश जी ने ऐसी ही सड़कों को देखकर कविता लिखने को मजबूर हुए होंगे।
बहरहाल इस सड़क पर अनुरक्षण कार्य 22 सितम्बर 2014 को शुरू हुआ। जिसे 21 सितम्बर 2019 तक चलना है।इस बीच 28 मई 2016 में आपदा आई और सड़क की ईमानदारी को बहा ले गई। नतीजतन सड़क की हालत बेहद खराब हो गई। इस पर सफर करना मौत को जानबूझ कर दावत देना है। बावजूद इसके सड़क पर गांवों की मजबूर जिंदगियां सफर कर रही हैं।
महकमा साइन बोर्ड लगाता है और जिस जगह सड़क भूस्खलन के चलते बंद हो जाती है उसे कई बार की मिन्नत के बाद खुलवाता है । लेकिन देहरादून के उस ठेकेदार को कभी तलब नहीं करता जिसने इस सड़क के अनुरक्षण का जिम्मा लिया था।
ठेकेदार राजीव कंडारी का लोकनिर्माण विभाग पर खौंफ या कोई और बात इसके बारे में तो महकमें के काबिल अफसर ही जानते होंगे। जनता तो सिर्फ सड़क की बदहाली जानती है और अपने उस कुलदेवता या ग्राम देवता को जिसका नाम लेकर वो इस सड़क पर डर-डर कर सफर के लिए निकलती है।
प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत बनी इस सड़का का हकीकत में कोई अनुरक्षण नहीं हो रहा है। बरसात में सड़क पर सफर करना अपनी जान को जोखिम में डालना है। बावजूद इसके किरेथ हो या पटुड़गांव के ग्रामीण या फिर सड़क के सहारे अपने गांव पहुचते हुए आस-पास के गांववाले सबको मजबूरी में सफर करना पड़ता है।
किसी की जान पर PWD और ठेकेदारों की मिलीभगत भारी पड़ती हो तो इससे महकमें के अफसरों पर कोई फर्क नहीं पड़ता। सड़क शुरू से लेकर अंत तक कई स्थानों पर जख्मी है। पुराने ठेकेदार को महकमें ने हटा दिया है अब कौन सड़क की मरम्मत करेगा इस बारे में आज-कल के आश्वासनों का दौर जारी है। सड़क की सेहत कितनी खराब है सीएम साहब को पता है बावजूद इसके सड़क की सेहत दुरूस्त नहीं होती।
ऐसे में सवाल उठता है कि फेसबुक पर जनता अपनी तकलीफ लिख भी देगी तो क्या होगा जब हाकिमों की नजरें इनायत नहीं होंगी। कहीं ऐसा न हो कि सोशल मीडिया पर शिकायतों की बाढ़ आ जाए और हाकिम से लेकर हुक्मरान तक बदनाम हो जांए। जरूरत फेसबुक जैसी आभासी दुनिया की नहीं जमीनी हकीकत से रू-ब-रू होने की है ताकि फेसबुक की जरूरत ही न पड़े।