उत्तरकाशी। सूबे के पहाड़ी इलाकों में सेहत और गुणवक्ता वाली शिक्षा का सवाल यक्ष के प्रश्न की तरह रह गया है। जिसका जवाब पिछले सोलह सालों में एक भी सियासी युधिष्ठ नहीं दे पाया है। आलम ये है कि यहां आधा शिक्षण सत्र बीत जाने के बाद किताबें मुहैया होती है। सवाल उठना भी लाजमी है कि आज तक क्या पढ़ाया होगा मास्टर जी ने? हम बात कर रहे हैं उत्तरकाशी जिले के विकासखंड नौगांव के बंचाण गांव की। जहां सरकारी शिक्षा कि एक स्याह हकीकत ये भी है कि स्कूल जर्जर भवन में है कुर्सी-मेज तो छोड़िए बैठने के लिए बच्चों को टाट-पट्टी तक नसीब नहीं है। ज़मीन पर बैठे छात्रों की नजर ब्लैक बोर्ड पर कम छत पर ज्यादा रहती है। गांव के मुखिया बताते हैं कि प्राथमिक विद्यालय की स्थापना 1965 के करीब हुई थी। लेकिन तब से अब तक महकमे के किसी भी अधिकारी ने न तो यहां आने की जहमत उठाई और न ही इस स्कूल की कोई खैर-खबर ली। प्रधान जी की माने तो इस स्कूल की बदहाली के बाबत उन्होंने कई बार शिक्षा विभाग को खत लिख चुके हैं। मगर आज तक महकमे के किसी अधिकारी का दिल स्कूल की बदहाली पर नहीं पसीजा। सवाल ये है कि अगर किसी रोज स्कूल का लगातार जर्जर हो रहा भवन बारिश,तूफान या आंधी की मार नहीं सह पाया तो उस अनहोनी का जिम्मेदार कौन होगा। लापरवाह महकमा या वो काबिल सरकार जिसे अपने संसाधनों की हालत के बारे में खबर ही नहीं है। बहरहाल यहां पढ़ रहे 30 विद्यार्थियों का भविष्य शिक्षा महकमें के कारनामों से अंधकार में ही दिख रहा है।