देहरादून- देश के इतिहास में भी शायद आज तक ऐसा नहीं होगा, जिस तिरंगे की आन-बान-शान के लिए हमारे जांबाज सैनिक खुद को फना करने से नहीं हिचकते। जिस तिरंगे को आसमान में लहराता देखकर खुद-ब-खुद हाथ सैल्यूट के लिए उठ जाता है।
उत्तराखंड जब से वजूद मे आया है हर बार आजादी की सालगिरह पर तिरंगा परेड ग्राउंड में फहराया गया। सूबे के हर मुख्यमंत्री ने राष्ट्रीय ध्वज का आरोहण किया, जैसे ही तिरंगे में लिपटे फूल जमी पर गिरे और आसमान में तिरंगा लहराया आज से पहले के हर मुख्यमंत्रियों के हाथ खुद-ब-खुद तिरंगे को सलामी देने के लिए उठे हैं। लेकिन आज पहली बार डबल इंजन के दौर में जश्न आजादी का पर्व ऐसा रहा जो इतिहास बन गया है।
उत्तराखंड की जनता साल 2017 के 15 अगस्त को याद रखेंगे इस तारीख को जब इतिहास के पन्नों पर उत्तराखंड के लिहाज से पलटा जाएगा तो पता चलेगा कि सूबे के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने परेड ग्राउंड मे ध्वजारोहण तो किया लेकिन उसको सलाम नही किया। उनके हाथ तिरंगे को सैल्यूट करने के लिए नहीं उठे।
वजह चाहे जो भी रही हो लेकिन सीएम त्रिवेंद्र रावत इतिहास पुरूष बन गए हैं। सैनिक बहुल उत्तराखंड में आजादी की सालगिरह पर एक नई परंपरा को जन्म देकर सूबे के मुख्यमंत्री ने शुरू कर खूब चर्चा बटोरी। देहरादून के परेड ग्राउ़ड में हर एक हैरानी के साथ सीएम को देखता रहा कि अब सीएम रावत सैल्यूट करेंगे लेकिन सीएम त्रिवेंद्र रावत ने नहीं किया। मुख्यमंत्री ने आरोहण किया लेकिन आजादी के प्रतीक तिरंगे को सैल्यूट करना मुनासिब नहीं समझा।
इतना ही नहीं चर्चा में तो अजय भट्ट और भाजपा प्रवक्ता विनय गोयल भी रहे । दरअसल मंच की शोभा बढ़ाने वाली पहली पांत में सीएम त्रिवेंद्र रावत के साथ भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट और प्रदेश प्रवक्ता विनय गोयल को भी जगह मिली। जबकि अजय भट्ट और विनय गोयल न तो मंत्री हैं न विधायक। बावजूद इसके मंच में विराजमान रहे।
ऐसे में चर्चा होती रही कि या तो सीएम त्रिवेंद्र रावत तिरंगे को सम्मान देना भूल गए है या वे सैन्य बहुल राज्य मे एक अलग परंपरा शुरू करना चाहते हैं। चर्चा इस बात की भी थी कि जिस संस्था में सीएम रावत दीक्षित हुए हैं वहां तीन रंग से ज्यादा एक रंग की अहमियत है। वजह चाहे जो भी हो आजादी की वर्षगांठ पर सीएम रावत ने खूब सुर्खियां बटोरी हैं, ड्रेस से लेकर सैल्यूट तक।