ब्यूरो- कांग्रेस ने जहां सबको चौकाते हुए सीएम हरीश रावत को दो सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए उतारा वहीं प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय को पहाड़ से लाकर मैदान में पटक दिया। तय है कि हरीश रावत के कद के हिसाब से उनके लिए न तो हरिद्वार ग्रामीण और न उधमसिंहनगर की किच्छा सीट टफ मानी जा रही है। लेकिन देहरादून की मैदानी सीट सहसपुर पर कांग्रेस ने पहाड़ी योद्धा किशोर उपाध्याय को उतार कर उनका सांस फूला दिया है।
सहसपुर सीट के चुनावी इतिहास पर नजर डाली जाए तो पता चलता है कि सहसपुर में कांग्रेस के समीकरण मुफीद होने के बावजूद कांग्रेस 2002 के अलावा जीत की फसल नहीं काट पाई है। दरअसल 2007 और 2012 में कांग्रेस के समीकरण भितराघात और बगावत के चलते उलझ गए और दोनों चुनाव में जीत भाजपा के हाथ लगी। इस बार कांग्रेस आलाकमान ने प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय को अनिच्छा के बावजूद सहसपुर भेज दिया।
ऐसे में सहसपुर में 2012 के दावेदार आर्येंद्र शर्मा ने पार्टी के खिलाफ बगावत करते हुए किशोर के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। हालांकि इस सीट पर बगावत से भाजपा भी जूझ रही है भाजपा उम्मीदवार सहदेव पुंडीर के सामने लक्ष्मी अग्रवाल ने भी बगावती तेवर दिखा रखे हैं।
बहरहाल सहसपुर किशोर उपाध्याय के लिए अग्निपरीक्षा है। पास हुए तो सूबे में एक बड़े नेता बनकर उभर जांएगे और आलाकमान के सामने उनका वजूद इतना भारी हो जाएगा कि किशोर की बात को आसानी से नकारा नहीं जाएगा। सरकार और संगठन जहां किशोर जाना चाहेंगे वहां हैवीवेट किशोर को रखना आलाकमान की मजबूरी होगी। लेकिन अगर सहसपुर के इम्तिहान में किशोर बागियों की बदौलत फेल हो गए तो, पार्टी अध्यक्ष की हैसियत से सीएम हरीश रावत को कई बार अपने तेवरों से असहज करने वाले किशोर उपाध्याय सियासत के बियावान में भी गायब हो सकते हैं।
हालांकि होगा क्या ये तो वक्त ही बताएगा, बहरहाल कभी हरीश रावत के खासमखास और उनके लिए वे 2007 में कई बार तिवारी सरकार से टकराने वाले किशोर सहसपुर में बगावत के साए में हैं। जिससे निबटने के लिए किशोर एंड कंपनी ने पूरी जान लगा रखी है।