देहरादून- हर इंसान अपनी मूलभूत आवश्यकता रोटी,कपड़ा और मकान के लिए कमाता ताकि उसका परिवार खुश रहे…लेकिन आज भी कई ऐसी जगह है जहां लोगों के पास रहने के लिए छत औऱ खाने को रोटी भी नहीं है. कई लोग, छोटे-छोटे बच्चे मजबूर हैं मौत की दीवार के नीचे सोने को.
बात उत्तराखंड की करें तो भूस्खलन की जद में कई परिवार आ चुकें है औऱ घरों में कीचड़-पानी-मलबा घुस चुका है लेकिन लोग मजबूर हैं ऐसे स्थिति में रहने को. सरकारें लाख वादे करती है आवास योजना से लेकर मदद राशी की लेकिन वो मात्र घटनास्थल तक ही याद रखते हैं और भूल जाते हैं. बात उत्तरकाशी रेप पीड़िता के परिवार की ही कर लो…क्या उन विकलांगों को घर और मदद राशि मिली होगी?
एक परिवार जो रह रहा है मौत की दीवारों के बीच
आज हम बात करेंगे ऐसे ही एक परिवार की जो टूटी हुई दीवारों में मौत के बीच रह रहे हैं. लेकिन बूढ़ी महिला करे भी तो क्या…3 बच्चों का भार अकेली एक महिला पर है. हम आपको एक ऐसे परिवार की जिंदगी के बारे में बातने जा रहे हैं जहां दीवारें भी कमरे के अंदर झांक-झांक कर देख रही हैं…एक अकेली बूढ़ी महिला के घर की हालत ऐसी है शायद एक हल्का सा भूकंप का झटका सब तबाह कर देगा. जी हां गुप्तकाशी के पास भैसारी गांव में रह रहे एक बेहद सामान्य और नियति की मार झेल रहे एक गरीब परिवार इसी हाल में रह रहा है. तस्वीरें देखकर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि घर औऱ घर में रहने वालों की हालत क्या होगी.
लेकिन इन तक कोई भी योजना औऱ कोई भी सरकार के मुआइंदे नहीं पहुंचे.
2 साल पहले घर के मुखिया मंगलसिंह दुर्घटना का हुए शिकार
जानकारी में पता चला कि 2 वर्ष पूर्व घर के मुखिया मंगलसिंह किसी दुर्घटना का शिकार हो गए थे। वे अपने पीछे 3 बच्चों, पत्नी और एक बूढ़ी माँ को छोड़ गए…. जिसमें 2 बेटियां और एक 7 साल का बेटा…जिसके बाद सारा भार एक महिला पर आ गया…बेटियों की शिक्षा दीक्षा का कुछ खर्चा उपहार समिति उठा रही है। लगातार हो रहे भूस्खलन और कुछ वर्ष पहले आये भूकम्प के कारण मकान बेहद जर्जर अवस्था में आ गया था. 2 कमरों की चारों दीवारें पारदर्शी हो गयी हैं। आलम यह है क़ि दीवार पर पड़ी मोटी मोटी दीवारों से आराम से बच्चे बाहर से सामान अंदर पहुंचा देते हैं।
आवास योजना के नाम पर सुर्खियां बटोरती हैं लेकिन सच्चाई क्या है वो यहां जाकर देखें
विश्वास नहीं होती कि इस दौर में भी कई लोग कई परिवार ऐसे हैं जो घास-फूस से बने और टूटी दीवारों के नीचे रह रहे हैं. इसी परिवार को देख लीजिए..एक बूढ़ी महिला जिसने पूरा जीवन घर औऱ बच्चों को पढ़ाने लिखाने में लगाया आज उसके पास न तो बेटा है जो उसका ख्याल रखे और न घर है…अक्सर बीमार रहती है…
धन्य हो मंगल की पत्नी के लिए जो दिन भर काम करके 2 वक़्त की रोटी जुटाती है
लेकिन धन्य हो मंगल की पत्नी के लिए जो दिन भर काम करके बेमुश्किल 2 वक़्त की रोटी जुटा पाती है…अब मामूली सा भी झटका मकान को तबाह कर सकता है. बच्चे रात को इस बरसात में चैन से सो नहीं पाते, पढ़ना तो दूर की बात है. छत लगातार टपक रही है..सरकार आवास योजना के नाम पर सुर्खियां बटोरती हैं लेकिन सच्चाई क्या है वो यहां जाकर देखें.
मदद के लिए आगे आने लगे हैं लोग
वहीं अच्छी खबर ये है कि इनकी मदद के लिए पहल कर ये पता चल गया है कि इस दौर में अभी ऐसे लोग हैं जो दूसरो की भलाई की भी सोचते हैं. उत्तराखंड से इनकी मदद के लिए हाथ बढ़ने लगे हैं. उपहार समिति ने 30000 रूपये देकर इनकी मदद की.
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