काशीपुर – गढ़वाली में एक कहावत है,”एक गौं मा गदरा तीन, एक सुख्यूं द्वी मा पाणी नी ” मतलब एक गांव ऐसा है जिसमे कहने को तो तीन गधरे हैं लेकिन उनकी हालत ऐसी है कि एक पूरी तरह सूखा हुआ है जबकि बाकि दो में पानी है ही नहीं।
कुछ इसी कहावत की तरह है उधमसिंहनगर जिले के काशीपुर में मौजूद ब्लड बैंकों की सेहत। कहने को तो यहां सरकारी और गैरसरकारी मिलाकर तीन ब्लडबैंक हैं। लेकिन सरकारी वाले में अक्सर खून की कमी रहती है जबकि निजी ब्लड बैंक वाले तिमारदार की रगों का खून दाम सुनाकर सुखा देते हैं। बताया जा रहा है कि निजी ब्लड बैंक वाले मौके का फायदा उठाने की फिराक में जरूरतमंद से खून के दाम इतने वसूल लेते हैं कि निजी उसे ब्लड बैंकों से नफरत हो जाती है। लेकिन काशीपुर का यही सच है।
सरकारी अस्पताल में ब्लड बैंक के घुटने टेकने के बाद जरूरतमंदों को निजी ब्लड बैंकों के दर पर मजबूरन एडियां रगड़नी पड़ती हैं। जहां ब्लड बैंक वाले मूजबूरी का फायदा उठाकर खून के दाम बढ़ा देते हैं। बताया जाता है कि कई बार ऐसा भी हुआ है कि जब खून की कमी के चलते कई जिंदगियों ने काशीपुर के अस्पतालों में दम तोड़ दिया। एल.डी.भट्ट सरकारी चिकित्सालय के चिकित्सा अधीक्षक की माने तो थैलीसीमिया के मरीजो के चलते अस्पताल के ब्लड बैंक में खून की कमी हो जाती है लेकिन जल्द ही इस तंगी को दूर कर लिया जाएगा।
खून फिलहाल ऐसी चीज है जिसे कारखानों में तैयार नहीं किया जा सकता। इसकी कमी को रक्तदाता ही पूरा कर सकते हैं। लिहाजा जरूरत है एक ऐसी रूधिरदाता मानव श्रंखला तैयार करने की जो वक्त पर पूरे सूबे के काम आ सके। ये तभी मुमकिन है जब आम आदमी को जिंदगी की अहमियत समझायी जाए और हर स्वस्थ मनुष्य को ऐसा रक्तदाता बनाया जाए जो बेहिचक रक्तदान को तैयार रहे।