उत्तरकाशी- डॉक्टर को धरती का भगवान माना जाता है क्योंकि जब जिंदगी दांव पर लगी हो तो रहमदिल ड़ॉक्टर ही मरीज को बचाता है। लेकिन जहां धरती के भगवान ही न हों वहां बीमार इंसान की फरियाद कौन सुनेगा और उसे कैसे बचाया जा सकता है। आप यकीन करो न करो लेकिंन सच यही है कि जिस उत्तरकाशी जिले की मोरी तहसील के गांवों में मासूम बच्चे अज्ञात बीमारी से तड़फ रहे हैं उस जिले मे महज 52 डॉक्टर ही तैनात हैं । जबकि जिले मे 107 डॉक्टर होने चाहिए थे। गजब तो ये है कि 52 डॉक्टरों में से 9 लंबी छुट्टी पर हैं 3 बड़ी डिग्री लेने मेडिकल कालेज में दाखिल हैं जबकि 3 डॉक्टरों नें सरकारी सेवा से इस्तीफा दे दिया है। जिले के ताजे हालात ये हैं कि इतने बड़े जिले में महज 37 डॉक्टर ही अपना फर्ज निभा रहे हैं।
साफ है कि पहाड़ का भूगोल अलग राज्य बनने के बाद पहाड़ी आबादी का शत्रु हो गया है। राज्य बनने से पहले सेहत का सवाल जितना गंभीर था उतना आज भी है रत्ती भर का भी बदलाव नहीं हुआ है। क्योंकि उत्तरकाशी जिले में जिस मोरी ब्लाक के लिवाड़ी गांव में मासूम बच्चे अज्ञात बीमारी से ग्रस्त हैं उस गांव में पिछले दो दशक से डॉक्टर साहब तो क्या पट्टी बांधने वाला मुलाजिम भी नही है। जबकी सरकारी एलोपैथिक हॉस्पिटल की इमारत है । लिवाड़ी में अस्पताल 1989 में स्थापित किया गया था और तब अलग राज्य नही बना था। गांव वाले बताते हैं 1989 से लेकर 1996 तक लिवाड़ी के अस्पताल मे एक चिकित्सक और एक वार्ड ब्वाय हमेशा तैनात रहा। लेकिंन 1996 में डॉक्टर साहब का ट्रांसफर हो गया उसके बाद से यहां कोई चिकित्सक तैनात नहीं हुआ। डॉक्टर के तबादले के बाद वार्ड ब्वाय भी लिवाड़ी में नही रूका आज हालात ये हैं कि अब यहां सिर्फ अस्पताल है ईलाज करने वाले नहीं। सबसे बड़ा दुर्भाग्य तो ये है कि अलग राज्य बनने के बाद भी हालात नहीं सुधरे हैं आज भी लिवाड़ी गांव पैदल जाना पड़ता है । सड़क से गांव तक पहुंचने में सात-8 घंटे लग जाते हैं।
ये भयानक तस्वीर मोरी तहसील के महज लिवाड़ी गांव की ही नही नहीं ब्लाक के 68 ग्राम पंचायतों के तकरीब सभी पंचायतों की है। 65 हजार से ज्यादा की आबादी वाले मोरी ब्लाक में एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, एक अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्र ,चार राजकीय एलोपैथिक चिकित्सालय लेकिन अगर तैनात चिकित्सक की बात की जाए तो वो एकमात्र मोरी के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में। जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से करीब 200 किलोमीटर दूर इन गांवों की भौगौलिक स्थित बड़ी विकट है। 68 ग्राम सभाओं में से 40 गांव ऐसे हैं जो सड़क से पांच से लेकर 26 किलोमीटर दूर हैं। यानि सफर पैदल ही करना है।
अब सोचिए ऐसी परिस्थितियों में जिंदगी की जंग जीती जा सकती है ! ऐसे मे सवाल उठता है कि अलग राज्य बनने के बाद सरकारों ने किया क्या है आज तक वे डॉक्टरों से ये क्यों नहीं पूछ पाए हैं कि मोटी पगार के बावजूद भी उन्हे पहाड़ में सेवा देने से गुरेज क्यों है। ऐसा नहीं कि सब डॉक्टर एक जैसे हों लेकिन जो हैं वे इतने कम हैं कि अकेला चना भाड़ नही फोड़ सकता जैसी हालत मे हैं।