पीपलकोटी- कुरुड़ मंदिर से दशोली और बधाण की मां नंदा कैलास के लिए रवाना हो गई है। अब उर्गम, बंड क्षेत्र, कुजौं-मकोट क्षेत्र और स्यूंण-बैमरु क्षेत्र की मां नंदा की लोकजात 6 सितंबर से शुरु हो रही है। प्रतिवर्ष नंदा को कैलाश विदा करने के बाद ही ग्रामीण धान की फसल काटते हैं। जोशीमठ क्षेत्र की नंदीकुंड नंदा जात उच्च हिमालयी क्षेत्र नंदीकुंड और बंड क्षेत्र की नंदा नरीला नामक स्थान पर जाती है।
बंड मंदिर समिति के सदस्य सुनील कोठियाल का कहना है कि सीजन में धरती पर उगने वाली ककड़ी, मक्का, चूड़ा(भूना चावल) आदि सामग्री को भी नंदा को भेंट की जाती है। नंदा अष्टमी को नंदा जात संपन्न होती है। भक्तों को ब्रह्म कमल मां नंदा के प्रसाद के रूप में दिया जाता है। जिले के हर मठ–मंदिर में देवताओं को ब्रह्मकमल चढ़ाया जाता है। मान्यता है कि नंदा अष्टमी के दिन पूजा-अर्चना के बाद कोई भी ग्रामीण उच्च हिमालयी क्षेत्र के बुग्यालों में प्रवेश नहीं करता है।