देहरादून– संस्कृत की एक कहावत है ‘प्रथम ग्रासे मच्छिका पात्रे’ यानि भोजन के पहले निवाले लेने से पहले ही बर्तन में मक्खी का गिर जाना। हिंदी में कहें तो सिर मुडाते ही ओले पड़ना।
या फिर नई परिस्थितियों को देखते हुए ऐसा भी कहा जा सकता है कि बिच्छु का मंत्र आता नहीं और सांप के बिल में हाथ दे दिया।
उत्तराखंड सरकार के साथ भी कुछ ऐसा ही हो गया है,सरकार या तो अंजान थी, या हो सकता है कि सरकार अपनी हनक में रही और सरकारी नियम कानूनों ने सरकार को घुटनों के बल बैठने को मजबूर कर दिया।
दरअसल स्वच्छ भारत अभियान के तहत जिस कचरा खत्म करने वाली मशीन को देहरादून में रिस्पना (ऋषिपर्णा) नदी के किनारे लगाया गया था। उस पर नगर निगम और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने आंखे तरेर दी हैं।
सरकार के जिस ड्रीम प्रोजेक्ट ‘किल टू वेस्ट मशीन’ का सीएम ने उदघाटन किया उसे नगर निगम ने बंद करवा दिया है। बंद करने की वजह बताई गई है कि कूड़ा जलाने वाली मशीन को स्थापित करने के लिए सरकार ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से एनओसी नहीं ली गई।
रिस्पना को ऋषिपर्णा बनाने की कवायद के तहत लगाई गई किल टू वेस्ट मशीन की खूबी के बारे में बताया गया था कि कि ये 100 किलो कूड़े को 10 किलो कचरे में बदल देगी। बहरहाल सीएम के उदघाटन के दो दिन बाद ही मशीन को नगर निगम ने बंद करवा दिया है। नगर आयुक्त का कहना है कि जब तक मशीन बनाने वाली कंपनी अपने दावों को प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से प्रमाणित नहीं करवाती तब तक मशीन बंद रहेगी।
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सरकार को ये मामूली सी कानूनी दांव पेंच पता नहीं थे या फिर सराकर को अपने किए दावों से डर लग रहा था कि कहीं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की कसौटी पर किल-टू-वेस्ट की खूबियां धड़ाम न हो जाएं। बहरहाल सच चाहे जो भी हो किल-टू-वेस्ट मशीन को लेकर सरकार की किरकिरी जरूर हो गई है।