धनोल्टी।संवाददाता- टिहरी डैम का जब से शिलान्यास हुआ तब से लेकर बनने तक हमेशा से सुर्खियों में रहा है। टिहरी बांध के लिए भागीरथी और भिलंगना नदी कृत्रिम झील में तब्दील होकर अपनी पहचान खो चुकी हैं। इस झील का पानी किसी के लिए वरदान है तो किसी के लिए अभिशाप साबित हो रहा है। दरअसल झील से अगर बिजली बन रही है तो इसका पानी से तटवर्ती गांवों के वजूद के लिए अजगर की कुंडली साबित हो रहा है। आलम ये है कि पानी से तटवर्ती गांवों की खेती की जमीन हो या रिहायश के लाखों के मकान सब भूंधंसाव की जद में आकर जर्जर हो चुके हैं। कोई घर ऐसा नही है जो साबुत बचा हो। जहां आपकी नजर जाएगी हर एक मकान की दीवार पर झील के पानी के दस्तखत नजर आजाएंगे। बावजूद इसके टिहरी जल विकास निगम और जिला प्रशासन ग्रामीणों की सुध लेने को तैयार नहीं है। जबकि गांव वालों की माने तो सैकड़ों बार प्रशासन और टीएचडीसी से विस्थापन की गुहार लगा ली गई है। लाखों की लागत के मकान हर बरसात के बाद भूधंसाव की जद में आकर जर्जर हो जाते हैं। भूवैज्ञानिक झील के पानी को तटवर्ती गांवों के लिए खतरा बता चुके हैं, लेकिन हाकिमों के कानों में कोई फरियाद नहीं गूंजती। हालांकि अब चुनावी साल में धनोल्टी के विधायक महावीर रांगड़ ने अपने विधानसभा क्षेत्र के सटे गांवों के विस्थापन का मसला उठाया है और चेतावनी दी है कि अगर उनके क्षेत्र के ग्रामीणोंं के विस्थापन के लिए जल्द कोई ठोस कदम न उठाया गया तो वे जिला प्रशासन और टीएचडीसी प्रशासन के खिलाफ एक बड़ा आंदोलन छेड़गें। बहरहाल देखना ये है कि विधायक की चेतावनी को प्रशासन किस अंदाज में लेता है।