उत्तराखंड में पहाड़ों में रहने वाली आबादी इन हालातों में पलायन न करे तो क्या करे साहब ! न हमारे पास सड़कें है न स्कूलों में मास्टर हैं और न अस्पतालों में डॉक्टर। खेती किसानी को बंदर और सुअर चौपट कर रहे हैं।
ये पीड़ा उस आम पहाड़ी समुदाय की है जो पहाड़ों में इन तकलीफों से लगातार दो-चार हो रहा है और पलायन का मन बना रहा है। उत्तरकाशी जिले में स्वास्थ्य सेवाओं की बात की जाए तो पूरी तरह से, पटरी से उतरी हुई दिखाई दे रही है। जिले में मौजूद सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (C.H.C.) जैसे मंझोले अस्पताल हों या फिर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (P.H.C) सबको ईलाज की दरकार है।
आलम ये है कि कहीं डॉक्टर नहीं है तो कही दवा नही, कही चैकअप करने के यंत्र नहीं हैं तो कही उन्हें चलाने वाले पैरा मैडिकल मुलाजिम। लिहाजा बीमारों को वक्त पर ईलाज नहीं मिल रहा है। आपको ये जानकर ताज्जुब होगा कि जिले में 107 चिकित्सकों के पद स्वीकृत हैं जबकि मौजूदा वक्त में सिर्फ 38 ही अपनी सेवाएं दे रहे हैं। जिले में 4 कम्युनिटी हेल्थ सेंटर, 8 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, 7 अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, 20 स्टेट ऐलोपैथिक डिस्पेंसरी व 85 स्वास्थ्य उप केंद्र हैं।
बावजूद इसके ज्यादातर अस्पतालों में स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की बेहद कमी है। ज्यदातर अस्पतालों में मानकों के मुताबिक चिकित्सकों की तैनाती ही नहीं हुई है। चिन्यालीसौड़, पुरोला और नौगांव जैस बड़े इलाकों के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रो में 2-2 विशेषज्ञ चिकित्सकों के भंरोसे मरीजों का इलाज चल रहा है। जबकि वहां 10-10 विशेषज्ञ डॉक्टर होने चाहिए थे। धरती के भगवान पहाड़ों के भूगोल से रुष्ट हैं। बावजूद इसके सरकार इस सवाल के प्रति संजीदा नहीं हैं। ऐसे में पलायन नहीं होगा तो क्या होगा।