टिहरी- यूं तो सूबे में तकरीबन हर सरकारी स्कूल में बदहाली के ग्रहण की छाया है,लेकिन सहूलियतों को तरसते पहाड़ी इलाकों मे सरकारी स्कूलों की तस्वीर और भी बदरंग है। जौनपुर विकासखंड के साटागाड हाईस्कूल की तकदीर देखिए! साल 2013 की आपदा क्या आई स्कूल की हालत रिफ्यूजियों जैसी हो गई है।
आलम ये है कि सरकारी सिस्टम की बेरुखी के चलते इस स्कूल की हालत उस खेत की तरह हो गई है जिसकी बाढ़ ही खेत को खाने लगती है। पहले आपदा ने स्कूल की इमारत तबाह की और अब सरकारी सिस्टम ने तालीम की बुनियाद ही बर्बाद कर के रख दी। साटागाड स्कूल सरकार के लिए ऐसा आईना है जहां सरकार अपने और राज्य के अक्श को देखे तो उसे पता चल जाएगा कि सूबे को पलायन की बीमारी क्यों लगी है ?
ये बात इसलिए कही जा रही है कि आपदा के चार साल गुजरने के बाद भी साटागाड का हाईस्कूल पड़ोस के गांव में बने जूनियर हाईस्कूल के प्रांगण में चलता है। जहां दर्जा 9 और 10 के बच्चे जिला पंचायत के रहमो-करम पर बने टीनशेड में जमीन पर बिना टाटपट्टी के बैठकर पढ़ते हैं।
गजब की बात तो ये है कि तबादला,अटैचमैंट,सुगम और दुर्गम में उलझा शिक्षा महकमा आज तक साटागाड हाईस्कूल को आंग्लभाषा का अध्यापक नहीं दिला पाया है। जबकि सत्र खत्म होने को है और उत्तराखंड शिक्षा परिषद इस सत्र के लिए परीक्षाओँ की तारीख तय कर चुका है।
ऐसे में सवाल उठता है कि जब बच्चों की बुनियाद ही सरकारी सिस्टम की दीमक खा चुकी हो तो उस भवन से निकले मासूम एकलव्यों का क्या भविष्य बनेगा। ऐसे बच्चों का स्किल डेवलपमेंट क्या होगा जहां के बारे में सरकार को पता नहीं है कि अंग्रेजी पढ़ाने वाला कोई है भी या नहीं!