जनवरी का महीना है लेकिन सूबे के आसमान से बादल रूठे हुए हैं। बिन बारिश जहां रबी की फसल पर संकट मंडराकर सूबे में सूखे के हालात पैदा हो रहे हैं वहीं उच्च हिमालयी क्षेत्र में सुलगे हुए जंगलों को राहत भी नहीं मिल पा रही है।
आलम ये है कि पिछले एक महीने से उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्र में जंगल आग की चपेट में हैं। मंजर देखकर सवाल उठ रहे हैं कि सूबे में जंगलात महकमा है भी या नहीं!
दुर्लभ प्रजाति के वन्य जीवों की जिंदगी पर बन आई है। वन्य जीव जीवन बचाने के लिए इंसानी बस्तियों की ओर रुख करने लगे हैं। लेकिन मोटी पगार लेने वाले वन महकमे के अधिकारी हों या मुलाजिम सभी आग पर काबू पा लेने के दावों तक सिमटे हुए है।
11 दिसंबर को पिथौरागढ़ के पंचाचूली ग्लेशियर की तलहटी में आग लगने की घटना के बाद 20 दिसंबर को उत्तरकाशी की मुखेम रेंज में धौंतरी के जंगल धधक उठे। यह आग ठंडी भी नहीं पड़ी थी कि गत 13 जनवरी को कैलास मानसरोवर यात्रा मार्ग पर छियालेख से गर्ब्र्यांग के बीच बुग्याल दवानल से सुलग उठे।
वहीं अब चमोली जिले में सीमांत तहसील जोशीमठ के जंगलों में आग भड़की हुई है। आग लगातार फैलती जा रही है। हालांकि, ग्रामीणों के साथ ही वन विभाग भी दो दिनों से आग पर काबू पाने का कोशिश कर रहा है, लेकिन इसमें सफलता नहीं मिली। आलम ये है कि जोशीमठ की फिजां में धुंआ पसरा हुआ है।
जोशीमठ के जंगलों में जगह-जगह भड़की आग के सामने वन विभाग के संसाधन भी बौने साबित हो रहे हैं। हालात यह है कि खुले मौसम में भी चारों ओर धुंध पसरी हुई हैं। वन विभाग का तर्क है कि चट्टानी क्षेत्र होने के कारण आग पर काबू नहीं हो पा रहा है। नतीजा, जंगलों की यह आग अब आबादी वाले इलाकों का रुख करने लगी है।
नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क के इन जंगलों में भरड़ व हिमालयन थार के अलावा दूसरी कई दुर्लभ प्रजाति के वन्य प्राणियों का वास भी है। आग लगने से उनके ठिकानों पर भी खतरा मंडरा रहा है। इससे वे आबादी की ओर आ रहे हैं। गौरतलब है कि वन्य जीव अंगों के तस्कर शीतकाल में ही जंगलों को निशाना बनाते हैं। वे ऐसे ही मौकों की तलाश में रहते हैं, ताकि आसानी से निर्दोष जंगली जीव उनके चंगुल में फंस सकें।