देहरादून- बीते रोज दो बड़ी बातें हुई, पहली बात ये कि सीएम ने सरकारी शिक्षकों के अधिवेशन में शिरकत करते हुए उन्हें सच का वो आईना दिखाया जिसे देखकर डर लग रहा है। दूसरी बात ये कि सीएम से निजी स्कूलों के प्रतिनिधिमंडल ने मुलाकात की। अधिवेशन में सीएम त्रिवेंद्र रावत ने राज्य के खजाने से मोटी पगार लेने वाले सरकारी अध्यापकों के सामने गंभीर बात कही।
अधिवेशन में सीएम ने कहा कि मांग तो पूरी हो ही जाएंगी अगर नौकरी रही, लेकिन अगर इसी रफ्तार से सरकारी स्कूल बंद होते रहे तो सरकारी नौकरी कहां रहेगी। अब पता नहीं सरकारी अध्यापकों को सीएम की बात का मर्म समझ में आया या नहीं लेकिन दानिशमंदों को बात आसानी से समझ में आ गई है।
दरअसल अब तक राज्य में 2500 सरकारी स्कूल बंद हो चुके हैं जबकि 1000 से ज्यादा सरकारी स्कूलों पर बंदी की तलवार लटक रही है। यानि आम आदमी का सरकारी तालीम के इंतजामात से मोहभंग हो रहा है। कारण सरकार भी जानती है और सरकारी शिक्षा का बोझ अपने कांधे पर उठाए शिक्षा विभाग भी।
बहरहाल सीएम के आंकड़ों को ही सच मान लिया जाए तो निजी स्कूलों मे दाखिला लेने वालों की रफ्तार लगातार बढ़ रही है जबकि सरकारी स्कूलों से नाम कटाने वालों मे लगातार इजाफा हो रहा है। ऐसे मे तय है कि वो दिन जल्द सामने आ जाएगा जब राज्य में सारे सरकारी स्कूल बंद हो जाएंगे। जाहिर सी बात है कि जब सरकारी स्कूल ही नहीं होगे तो सरकार सरकारी अध्यापक क्यों भर्ती करेगी।
यानि न बांस रहेगा न बांसुरी बजेगी, न सरकारी शिक्षक होंगे न सरकार पर मांगों का दबाव बनेगा। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि उस तबके का क्या होगा जिनकी आमदनी अपने बच्चों को निजी स्कूल मे पढ़ाने या निजी स्कूलों के नखरे उठाने लायक नहीं होगी।