उधमसिंहनगर- जिले के एक गांव का नाम है हल्दू जद्दा खत्ता। अपने नाम की तरह ही विकट है इस गांव में जिंदगी जीना। जंगलात की जमीन में आबाद वनवासियों के इस गांव के ग्रामीण वोट तो डालते हैं लेकिन उसकी एवज में उनको किसी भी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिलता।
देवभूमि उत्तराखंड में आबाद इस गांव को सरकारी योजनाओं ने अछूत समझा हुआ है। ऐसा बर्ताव है मानो ये गांव भारत में नहीं कहीं विदेश में हों। हल्दू जद्दा खत्ता में बेगुनाह बच्चों के साथ भी भेदभाव बरता जा रहा है। बच्चे धरती पर ऊपर वाले के रहमकरम से सही सलामत पैदा हो जाते हैं वरना सरकारी योजनाओं का आलम तो ये है कि किसी भी मां का यहां जच्चा-बच्चा कार्ड नहीं बना और न अब ही बन रहा है। ‘जाको राखे साइयां मार सके न कोए’ की तर्ज पर इस गांव में प्रसूता और मासूम भगवान भंरोसे जी रहे हैं।
सारे देश मे स्वच्छ भारत अभियान चल रहा है, उत्तराखंड को खुले में शौच के अभिशाप से मुक्त होने का तमगा भी दे दिया गया है लेकिन हल्दू जद्दा खत्ता में मर्द हों या औरत या फिर बच्चे सभी खुले मे शौच के लिए अभिशप्त हैं। इस गांव में कोई पेयजल योजना नहीं है, कोई बिजली का पोल नहीं है किसी के पास मनरेगा का जॉब कार्ड नहीं है जिस मुख्यमंत्री स्वास्थ्य बीमा योजना का ढ़ोल सरकार पीट रही है उसका कार्ड भी नहीं है।
गांव मे आबादी है गजब का पशुधन है बावजूद इसके गांव वालों ने कभी किसी पशुधन प्रसार अधिकारी की शक्ल नहीं देखी किसी पशु डाक्टर ने हल्दू जद्दा खत्ता गांव का दौरा नहीं किया। स्कूल झोपड़ी में चलता है। जच्चा-बच्चा का टीकाकरण नहीं होता। गांव मे दाखिल होने के लिए कोई पक्की सड़क नहीं है। गांव वालों को सरकारी राशन की दुकान से भी राशन नहीं मिलता। इनका कसूर सिर्फ ये है कि ये वनवासी हैं और जंगलात की जमीन में आबाद हैं।
सूबे के कैबिनेट मंत्री अरविंद पांडे कहते हैं अटल जी की सरकार के बाद वनवासियो की सुध किसी ने नहीं ली कांग्रेस ने कुछ किया नहीं लेकिन भाजपा की सरकार में कुछ विशेष योजनाओँ के तहत वनवासियों को देश की मुख्यधारा से जोड़ा जाएगा। ग्राम प्रधान कहती हैं मुख्यमंत्री स्वास्थ्य बीमा योजना के फार्म भरे जा चुके हैं। जबकि एडीओ पंचायत कहते है वन भूमि में आबादी के कारण कोई सुविधा नही दी जा सकती।
गजब है, जब हम इसरो के जरिए दूसरे देशों के सेटेलाइट अंतरिक्ष में छोड़ रहे हैं उस दौर में हमे पता नहीं है कि हल्दू जद्दा खत्ता की प्रसूता को नौ महीने महीने तक कोई टीका नहीं लगता। हमे ये पता नहीं चलता कि इस गांव वोट डालने वाले हमारी नीतियों की वजह से खुले में शौच के लिए मजबूर हैं।