टिहरी – बाघों के हमले नहीं थम रहे हैं। न जाने, जंगलात महकमा कितने गांवों मे मरसिया पढना चाहता है। अब जंगली जानवरों के हमले से अाजि़ज़ आ चुकी जनता पूछने लगी है कि, आखिर कितने घरों के चिराग बुझने के बाद आपके दिलों का चिराग रोशन होगा साहब? ये सवाल लाज़मी भी है, आखिर जंगल की सरहद के भीतर खाद्य श्रंखला की कड़ी कैसे टूटी जो जंगली जानवर इंसानी बस्तियों मे अपना निवाला तलाश रहा है और बड़ा सवाल ये है कि आखिर ये कड़ी कब तक टूटी रहेगी ?
पहले देवप्रयाग के सजवांणकांडा गांव ने बेटी की मौत का मातम मनाया अब घनसाली विकासखंड के सेम स्वांला गांव में मां-बाप अपने बेटे के लिए रो रहे हैं। 13 साल के दौलत को घर के आंगन से गुलदार उठा ले गया। घनसाली विकासखंड के सेम स्वांला गांव गुलदार की दहशत से सहम गया है। रविवार शाम को 7 बजे के करीब स्वांला गांव में 13 साल के बच्चे को गुलदार ने उस वक्त उठाया जब वो अपने घर के आंगन में खेल रहा था। बताया जा रहा है कि गुलदार वहां पहले से घात लगाए बैठा था। ग्रामीणो ने सारी रात बच्चे की ढूंढ में गुजारी।
गुलदार के हमले से परेशान ग्रामीणों ने उसे आदमखोर घोषित कर मारने की मांग की है। तय है कि अगर वन्य जीव संघर्ष यूं ही पहाड़ी गांवों में होता रहा तो आबादी मैदानी इलाकों में पलायन के लिए मजबूर हो जाएगी। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि आखिर जंगलात महकमा करोड़ों रूपए कहां खर्च कर रहा है जाे अब तक जंगल के भीतर के पारिस्थितिक तंत्र को नहीं सुधार पाया है। जाहिर सी बात है कि जंगल के भीतर खाद्य श्रंखला गड़बड़ा गई है वरना जंगली जानवर इंसानी आबादी में क्य़ो आता ?