हार्टिकल्चर मिशन फॉर नार्थ ईस्ट हिमालयन स्टेट योजना का हाल
विदेशी नस्ल के सेब से कब महकेंगे पहाड़ी इलाके ?
कम ऊंचाई वाले क्षेत्र में नही दिख रहा उद्यान विभाग का काम
करोड़ों खर्च करने के बावजूद भी आम किसानों के लिए नही पनपी सरकारी नर्सरी
उत्तरकाशी– उत्तराखंड को कई तरह के प्रदेश बनाने के सरकारी ख्वाबों में एक ख्वाब था उद्यान प्रदेश बनाने का भी,जैसा कि हिमाचल प्रदेश है। लेकिन दूसरे सपनों की तरह उद्यान प्रदेश के ख्वाब पर भी ग्रहण लग रहा है। हालात ये हैं कि हर साल करोड़ खर्च करने के बावजूद राज्य में सेब की पैदावार घट रही है।कभी 55 हजार मीट्रिक टन सेब राज्य में पैदा होता था लेकिन अब की बार सेब उत्पादन 20 हजार मीट्रिक टन भी नही हुआ। 19 हजार मीट्रिक टन पर ही सेब उत्पादन ठहर गया।
हालांकि दावे किए गए थे कि उत्तरकाशी में अमेरिकन और हॉलैंड की प्रजातियां सेब के बागीचों में अपना जलवा बिखेरेंगी। जिले के जरमोला में सरकारी बगीचे में तीन साल मे फसल देने वाली विदेशी नस्लों के मदर प्लांट होने के बावजूद सेब की महकती लाली नही दिखी। कभी विदेशी नस्लों की सरकारी पैरवी में दलील दी जा रही थी कि ये नस्लें उन जगहों पर भी फूंलेगी फलेगी जहां सेब के माकूल आबोहवा नही होगी। मसलन साढे चार हजार फीट की ऊंचाई पर भी सेब के बागीचे लगाने की पैरवी की गई थी। लेकिन सरकारी काम सरकारी हिसाब से चल रहा है।
राज्य में पिछले 13 सालों से केंद्र पोषित हार्टिकल्चर मिशन फॉर नार्थ ईस्ट हिमालयन स्टेट योजना चल रही है। पिछले साल इस योजना पर 119 करोड़ खर्च किए गए। जिला ओर स्टेट प्लान मिलाकर तकरीबन 232 करो़ड़ 68 लाख का सरकारी काम सेबों की हालत सुधारने के लिया किया गया है और यह सिलसिला लगातार चल रहा है। जबकि हालत ये हैं कि उद्यान विभाग केंद्र पोषित परियोजना के लिए भी सेब की पौध तैयार नही कर पा रहा है। ऐसे मे सेब उत्पादकों को बेहतरीन नस्ल की विदेशी पौध नही मिल पा रही हैं और सेब उत्पादक निजी नर्सरियों पर भ्ंरोसा नही करता क्योंंकि उन्हे महसूस होता है कि ऐसा न हो कि 3 साल बाद सेब उत्पादन के मामले में उनकी उम्मीद धरासाई हो जाए।
जिले के सरकारी जरमोला उद्यान में उद्यान विभाग ने आयातित अमेरिकन और हॉलेंड नस्ल के 3080 पेड़ लगाए हैं जिनमें टॉपरेड, आरगन स्पर,ब्राइटएन अर्ली, रेड फ्यूजी, गोल्डन स्पर, समरक्वीन और स्कारलेट गाला जैसी प्रजातियों के पेड़ फल दे रहे हैं। उद्यान विभाग के पास जरमोला समेत जिले मे 83.28 हेक्टेयर के अपने बागीचे हैं। लेकिन सरकारी महकमा बजट खर्च करने के बावजूद उम्दा किस्म की विदेशी पौध इलाके के किसानों के लिए तैयार नही कर पाया। जबकि सरकारी मिशन था पर्वतीय क्षेत्र में उद्यानिकी का विकास करना। विभाग कम ऊंचाई वाले इलाकों में कुछ कर ही नही पा रहा है। नतीजा है कि करोड़ खर्च होने के बावजूद न तो सेब के बगानों का क्षेत्रफल बढ़ रहा है और न सेब का उत्पादन।