जीरो टालरेंस, जीरो टालरेंस, जीरो टालरेंस। मौजूदा दौर में इन दो शब्दों को बार बार सुनिए तो एक वक्त के बाद ये बोझिल से लगते हैं। लगता है इन्हें बोलने वाला आपके कानों में गरम तेल नहीं तो कम से कम गुनगुना तेल तो बिना जरूरत के डाल ही रहा है। चिढ़ सी होती है इन दो शब्दों को लंबे समय तक दोहरा कर। लेकिन क्या राज्य में दो आईएएस अधिकारियों का निलंबन कर त्रिवेंद्र रावत ने एक ताजी और उम्मीद भरी हवा का झोंका भेज दिया है?
अमूमन उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य में आईएएस अधिकारियों को सस्पेंड करने के पहले सरकारें सौ बार सोचती हैं। कोशिश करती हैं कि इससे बचा जाए। फिर अधिकारियों के हाथ में नेताओं की कई कुंडलियां होती हैं लिहाजा अधिकारियों पर हाथ डालने में नेताओं के पसीने छूटते हैं। लेकिन लगता है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत ने सत्ता संभालने के साथ ही तय कर लिया था कि एनएच 74 घोटाले में किसी को बख्शा नहीं जाएगा। तभी तो सीबीआई के जांच से इंकार करने के बावजूद त्रिवेंद्र रावत लगे रहे। यही वजह रही कि अब तक 20 से अधिक लोगों को एनएच 74 के चौड़ीकरण में मुआवजा घोटाला करने के आरोप में जेल भेजा जा चुका है। जिन दो आईएएस अधिकारियों को सीएम रावत ने निलंबित किया है वो दोनों अलग अलग समय पर ऊधमसिंह नगर के जिलाधिकारी की कुर्सी संभाल चुके इन दोनों अधिकारियों पर मुआवजा घोटाले में गंभीर आरोप लगे हैं। एसआईटी ने अपनी जांच में इन दोनों की भूमिका पर सवाल उठाए हैं।
जांच की शुरुआत से ही आशंका थी कि पूरी जांच निचले स्तर के अधिकारियों और कर्मचारियों तक ही सिमट कर रह जाएगी। बड़े स्तर के अधिकारियों पर कार्रवाई संभव नहीं लग रही थी। राज्य में कार्रवाई का इतिहास भी कुछ ऐसा ही रहा है। फिर ऐसे में त्रिवेंद्र रावत के इस कदम की तारीफ तो की ही जानी चाहिए। हालांकि अब जनता को त्रिवेंद्र रावत के उस कदम का इंतजार रहेगा जब इस घोटाले में शामिल एनएच के अधिकारियों और सफेदपोशों पर ऐसी ही कार्रवाई होती है।