देहरादून- सोशल मीडिया में प्लास्टिक के खाद्य पदर्थों की जो बात चल रही है वो यूं ही अफवाह नहीं है। हल्द्वानी में भी प्लास्टिक के अंडे अवाम की सेहत पर चोट पहुंचाने के लिए धड़ल्ले से बाजार में बिक रहे हैं।
जी हां यकीन मानिए जिन अंडों को प्रोटीन के तौर पर इस्तमाल किया जाता था अब उनमें प्रोटीन के बजाय प्लास्टिक जैसा घातक रसायन मिल रहा है। उबल जाने के कुछ देर तक आपकी सेहत के लिए जहर साबित होने वाले ये अंडे, ‘अंडे’ ही रहते हैं लेकिन कुछ वक्त के बाद ये खालिस प्लास्टिक मे तब्दील हो जाते हैं।
ये अंडे ऐसे है कि आग की तीली दिखाने पर प्लास्टिक के माफिक गलने शुरू हो जाते हैं। बावजूद इसके हल्द्वानी के बाजार मे ंलोगों की सेहत से खेलने को आमादा है।
गजब की बात है, जिन खबरों को महज तकनीक का कमाल मान कर सिरे से खारिज किया जा रहा था, उन खाद्य पदार्थों ने उत्तराखंड के छोटे-छोटे शहरों में दस्तक देकर भूचाल मचा दिया है। बावजूद इसके प्रशासन या तो खामोश है, या फिर जांच की बात ही कर रहा है।
हालांकि ये अलग बात है कि इस खालिस प्लास्टिक के खाद्य पदार्थो ने अभी तक सत्ता की प्राचीर के भीतर दस्तक नहीं दी है। अभी ये नकली खाद्य सामग्री आम आदमी के गली मुहल्ले वाले बाजारों में धड़ल्ले से बिक कर अंजान आम आदमी और गरीब-गुरबों की सेहत से खेल रही है।
ऐसे में सवाल उठता है कि, अगर इन अंड़ों में इंसान के लिए कोई घातक रसायन है तो सरकार स्वतः संज्ञान लेकर इनकी जांच क्यों नहीं करवा रही है। आखिर किसी अनहोनी का इंतजार क्यों किया जा रहा है?
सवाल ये भी है कि, सोशल मीडिया का अपने हितों के लिए भयंकर इस्तमाल करने वाली केंद्र और राज्य सरकार जनता के लिए जहर बन रहे खाद्य पदार्थों के खिलाफ कोई मुहिम क्यों नहीं छेड़ रही है?
वहीं उससे भी बड़ा सवाल ये है कि ‘अच्छे दिनों’ के दावों और वादों के बीच, ये कौन सी कमजोर कड़ी है जिसकी शह पर बेहिचक खाने में प्लास्टिक परोसा जा रहा है?