देहरादून- न जाने क्यों उत्तराखंड के पहाड़ों से सरकार की तरह सरकारी मुलाजिमों को बेंइंतहां नफरत है। आलम ये है कि सरकारों को जितनी नफरत गैरसैंण से है उससे कहीं ज्यादा नफरत सरकारी कर्मचारियों को पहाड़ से है। स्वेच्छा से पहाड़ में सरकारी मुलाजिम नौकरी नहीं करना चाहते, फिर चाहे वो मास्टर हों डॉक्टर हों या फिर नर्स।
कोई भी पहाड़ों में अपने हुनर से पहाड़ का दिल नहीं जीतना चाहता। कर्णप्रयाग सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में तैनात डाक्टर राजीव और उत्तरकाशी जिला अस्पताल मे तैनात डाक्टर चौबे से कोई प्रभावित नहीं होना चाहता। स्वार्थी मुलाजिमों को सिर्फ वक्त पर पगार चाहिए। तबादलो की सुुगबुगाहट सुनकर ही सरकारी मुलाजिमों का ग्रुप इक्ट्ठा हो जाता है। सरकार को हड़ताल की चेतावनी देनी शुरू हो जाती है जबकि तिकड़मबाज तबादला रुकवाने के लिए अपने नए पुराने समीकरणो का ताना-बाना जोड़ने का जुगाड करने लगते हैं।
आलम ये है कि दर्द से कराहते पहाड़ों को राहत देने के लिए सरकार ने सालों से मैदानों मे डटे डाक्टरों और सहायक स्टाफ पर तबादले की नकेल कसनी चाही तो मुलाजिमों के तेवर तल्ख होने लगे हैं। डाक्टरों ने पहाड़ी अस्पतालों में अपनी आमद दर्ज करवाने के बजाय तबादला रुकवाने के लिए महानिदेशालय के चक्कर काट रहे हैं। जबकि कुछ अदालत के कटघरे में सरकार को खींचने की तैयारी कर रहा है।
वहीं नर्सों, फार्मासिस्ट और दूसरे सहायक स्टॉफ ने भी तबादलों के खिलाफ लामबंदी कर ली है। ट्रांसफर से नाराज कर्मचारियों ने सरकार के खिलाफ एक जुट होना शुरू कर दिया है। हाल ये है कि मुलाजिमों को हड़ताल मंजूर है लेकिन सेवा नहीं। तबादलोंं के खिलाफ आज मैदानों में जमें नर्सों, फार्मासिस्टो और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के संगठन ने दून अस्पताल के सभागार मे बैठक की। जिसमें कर्मचारियों के लीडर्स ने सरकार को धमकी दी है कि अगर तबादले किए तो उग्र आंदोलन किया जाएगा।
ऐसे में देखना ये होगा कि सरकार क्या कदम उठाती है पांव पीछे खींचती है या फिर तिकड़मबाजों के तिलिस्म में उलझती है, या फिर अपने रुख पर अडी रहती हैं। काबिलेगौर बात ये है कि सरकारी कर्मचारियों के इन ग्रुप्स में कई ऐसे मास्टरमाइंड भी हैं जो तबदला रुकवाने की हर मुमकिन कोशिश करेंगे और नाकाम रहने पर हाजिरी ट्रिक अपनाने की कोशिश करेगें। हालांकि उनकी ये ट्रिक तब तक ही कामयाब रहेगी जब तक बायोमैट्रिक मशीन लग नहीं जाती। लिहाजा जरूरत है सख्त कदम उठाने की निगरानी रखने की, ताकि पहाड़ की पीड़ा कम होने के साथ-साथ कर्मचारी संगठनों की दादागिरी पर अंकुश लग सके।