टिहरी –रियो ऑलम्पिक में अगर हमारे खाते में एक रजत और एक कांस्य पदक दर्ज हुआ तो मलाल नहीं होना चाहिए। क्योंकि हमारी खेलों की बुनियाद बहुत कच्ची है। जिस स्कूली शिक्षा के दौरान खेल की बुनियाद रखी जाती है वहां के हालात बहुत खराब हैं। स्कूलों मे मिड-डे-मील का बजट है लेकिन खेल का नही। ऐसे में दुनिया के फलक पर देश का नाम सोने-चांदी से लिखने वाले खिलाड़ी कैसे पैदा हो सकते हैं।
आपको ये जानकर ताज्जुब होगा कि राज्य के सरकारी स्कूलों में खेल की गतिविधियों को अमली जामा पहनाने के लिए कोई बजट नही है। अगर कुछ है तो वो है 24 रूपए सालाना, जो सिर्फ गैरआरक्षित छात्रों से हर महीने 2 रू खेल फीस के रूप में वसूला जाता है। अब भला इस मंहगाई के जमाने में 24 रूपए में क्या खेल प्रतियोगिता का आयोजन किया जायेगा। ये फीस भी सिर्फ नौवीं दर्जे से 12वीं दर्जे के छात्रों से ली जाती है।
एक अकेले टिहरी जिले की बात की जाए तो जिले में 276 सरकारी स्कूल हैं। जिनमें दर्जा नौ से 12वीं तक 60 हजार छात्र-छात्राएं पढ़ते हैं। 60 हजार मे से 13800 छात्र-छात्राएं आरक्षित कोटे के हैं जिनसे कोई शुल्क ही नहीं लिया जाता। कई स्कूल एसें हैं जहां खेलने के लिए मैदान तक नही। इतना ही नहीं आपको ये जानकर ताज्जुब होगा कि टिहरी जिला मुख्यालय के अकेले खेल मैदान बौैराड़ी स्टेडियम में फुटबाल का खेल 22 खिलाड़ी ढंग से नही खेल सकते। जबकि पुराने टिहरी में 7 छोटे और 4 बड़े मैदान थे। तो जाहिर सी बात है कि जब बुनियाद ही कच्ची होगी तो महल खड़े कैसे होंगे।