देहरादून : खत्म हो जायेगा हिमालय का अस्तित्व? क्या गुजरे जामने की बात हो जायेगी बर्फ से ढकी चोटियां? आने वाली पीढियां सिर्फ किताबों में ही पढ़ पायेंगी कि एक था हिमालय? ऐसे कई सवाल हैं जो वाडिया भू विज्ञान संस्थान के एक बड़े खुलासे के बाद हमारे जेहन में घूम रहे हैं। आखिर ऐसा हो गया जो सदियों का हिमालय खत्म होने की कगार पर पहुंच गया है? आखिर क्यों नहीं रूक रहा हिमालय की बर्फ का पिघलना? कौन है हिमालय का गुनहगार? जिसकी साजिश के कारण खत्म होने की कगार पर पहुंच गया है हिमालय?
हिमालय का यह दुशमन है ब्लैक कार्बन
हम बात करने जा रहे हैं हिमालय के उस जानी दुशमन के बारे में जो धीरे-धीरे हिमालय का अस्तित्व मिटाने पर तुला हुआ है। हिमालय के इस दुशमन नम्बर वन का पता लगाया है वाडिया भू विज्ञान संस्थान उत्तराखंड ने। संस्थान के वैैज्ञानिकों ने खुलासा किया है कि हिमालय का यह दुशमन है ब्लैक कार्बन। हिमालय में ब्लैक कार्बन की मात्रा सामान्य से ढाई गुना बढ़कर 1800 नैनोग्राम जा पहुंची है। यह ग्लेशियर की बर्फ को पिघलाने में आग में घी काम कर रही है। तापमान बढने से पूरे हिमालय का इको सिस्टम प्रभावित हो रहा है।
चैंकाने वाले तथ्य आये सामने
वाडिया भू विज्ञान केन्द्र ने पहली बार यह खुलासा किया है। कि हिमालय के क्षेत्रों में ब्लैक कार्बन की मात्रा देखने में आ रही है। भू वैज्ञानिकों ने इसके लिए गंगोत्री के चीढ़ बासा व भोज बासा क्षेत्र में ब्लैक काॅर्बन की मात्रा नापने के लिए अपने यंत्र स्थापित किए थे। जिसके द्वारा चैंकाने वाले तथ्य सामने आये हैं। ब्लैक काॅर्बन मापने का चीढ़ बासा स्टेशन ट्री लाईन के नजदीक है जबकि भोज बासा स्नोलाईन के नजदीक रखा गया है। दोनों ही इस क्षेत्र की निगरानी करते हैं। दोनों ही यंत्रों से चैकाने वाली रिपोर्ट मिली है। वैज्ञानिकों की माने तो गांव के चूल्हे में जलने वाली लकड़ियों से लेकर शहरों के गाड़ियों से निकलने वाला धुआं हिमालय के लिए खतरनाक है।
ब्लैक काॅर्बन होगा संवेदनशील ग्लेशियरों के लिए अधिक घातक साबित
वाॅडिया भू विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों के खुलासे के मुताबिक हिमालय रेंज में ब्लैक कार्बन की मात्रा में काफी बृद्धि हो चली है। इसकी मात्रा 1800 नैनोग्राम दर्ज की गई। सामान्य रूप यह मात्रा लगभग एक हजार नैनोग्राम होनी चाहिए। तापमान बढ़ने से ग्लेशियरों से बर्फ पिघलने का सिलसिला पहले से ही जारी है। यह ब्लैक काॅर्बन संवेदनशील ग्लेशियरों के लिए अधिक घातक साबित होगा।
ग्लोबल वार्मिंग के चलते धीरे-धीरे ऊपर खिसक रही है ट्री लाइन
विश्व में तेजी से हो रहे जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा और सीधा प्रभाव हिमालय पर पड़ रहा है। ग्लोबल वार्मिंग के चलते ट्री लाइन धीरे-धीरे ऊपर खिसक रही है और जानवरों के रहने के स्थान भी। वाडिया भू विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों को वन्य जंतुओं के आवास स्थल में बदलाव आने के रिकॉर्ड मिले हैं। अपेक्षाकृत गर्म इलाकों में रहने वाले गुलदार और टाइगर ट्री लाइन से भी ऊपर के क्षेत्रों में देखे गए हैं। हिमालयी जीवों के बर्ताव में आ रहे इस बदलाव ने वैज्ञानिकों की चिंता बढ़ा दी है।
साढ़े चार हजार मीटर ऊंचाई स्थित केदारताल में देखा गया है बंदर को
उत्तराखंड में गंगोत्री हिमालय में 22 रिसर्चर पिछले तीन साल से विभिन्न विषयों पर शोध कर रहे हैं। यहां लगाए गए कैमरा ट्रेपों में गुलदार को काफी ऊंचाई पर ट्री लाइन के ऊपर तक देखा गया है। ऐसा ही टाइगर के साथ भी हो रहा है। वाडिया भू विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों ने बर्फीले क्षेत्रों खतलिंग और अस्कोट तक में टाइगर की मौजूदगी रिकार्ड की है। इके अलावा गंगोत्री हिमालय में बंदर भी दस्तक दे रहा है। बंदर घास के मैदानों, जंगलों और पहाड़ी इलाकों में ढाई हजार मीटर की ऊंचाई तक ही पाया जाता है। लेकिन, गंगोत्री हिमालय में कोल्ड डैजर्ट कही जाने वाली नेलॉग घाटी और बारोंमास बर्फ से ढके रहने वाले साढ़े चार हजार मीटर ऊंचाई स्थित केदारताल में बंदर को देखा गया है। वैज्ञानिक इसे जलवायु परिवर्तन के साथ ही हिमालय के बढ़ते तापमान और उससे प्रभावित होते पारस्थतिकीय तंत्र से जोड़कर देख रहे हैं। जो प्रारंभिक संकेत हैं, वे बेहद चिंताजनक हैं।
ब्लैक कार्बन से सबसे ज्यादा खतरा गंगोत्री, मिलाम, सुंदरदुंगा, नेवला और चिपा ग्लेशियरों को
पिघलते ग्लेशियर और लगातार बढ़ता तापमान यह इसारा कर रहा है कि सब कुछ ठीक नहीं है। ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार बढ़ने से हिमालय में एवलांच आने का खतरा और बढ़ जाता है,साथ ही जीव जंतुओं के आवास, व्यवहार में आ रहा परिवर्तन एक गंभीर संकेत की ओर इशारा कर रहा है जिससे बड़ा नुकसान हो सकता है। ब्लैक कार्बन से सबसे ज्यादा खतरा गंगोत्री, मिलाम, सुंदरदुंगा, नेवला और चिपा ग्लेशियरों को है, क्योंकि ये कम ऊंचाई पर स्थित हैं। यह सारे ग्लेशियर ज्यादातर नदियों के स्रोत हैं। ऐसे में अगर सरकार ने जल्द ही कोई कदम नही उठाया तो बेहद खराब हालात होने वाले हैं। ग्लेशियरों के पिघलने की रफतार बता रही है कि हिमायल में कुछ भी ठीक नहीं है।