रूड़की। सरकारी अस्पतालों में व्यवस्थाओं का इंतज़ाम न हो ये समझ आता है लेकिन व्यवस्थाएं होने के बावजूद वो धूल फांकती रहे इससे तमाम सवाल खड़े होने लाज़मी है। रुड़की के सरकारी अस्पताल का हाल भी कुछ ऐसा ही है जहां स्वास्थ्य सेवाएं तो है लेकिन न तो उनका इस्तमाल हो रहा है और न ही मरीज़ों के लिए फिजीशियन की तैनाती है। नतीजन नोटबंदी के इस दौर में गरीब जनता परेशान है कि इलाज कराएं तो आखिर कैसे? रुड़की के इस सरकारी अस्पताल में सबकुछ होकर भी कुछ नहीं है। यहां स्वास्थ्य संबंधी टेस्ट कराने के लिए तमाम जांच की मशीने तो है लेकिन ये मशीने महज़ शोपीस बनी है। सरकारी अस्पताल में इन मशीनों को चलाने वाले न तो रेडियोलोजिस्ट है और न ही मरीज़ों की जांच के लिए यहां कोई फिजीशियन की ही तैनाती है। पहले से नोटंबदी से परेशान चल रहे लोग दिक्कतों से जूझ रहे है और अब इस बात पर भड़के हुए है कि सरकारी अस्पताल में भी उनको इलाज नहीं मिल पा रहा है। और तो और उनकी इतनी हैसियत नहीं कि प्राईवेट अस्पताल में जाकर वो महंगा इलाज करा सके। अस्पताल के सीएमएस साहब अस्पताल में बंद पड़ी मशीनों का चालू कराने के लिए रेडियोलोजिस्ट और टेक्निशियनों की तैनाती की दुहाई तो देते रहे लेकिन सरकारी अस्पताल में फिजीशियन की तैनाती क्यों नहीं है इसका जवाब उनके पास भी नहीं मिला। सरकारी अस्पतालों में ढररे से उतरी स्वास्थ्य सेवाओं का ये कोई पहला मामला नहीं है अक्सर सरकारी अस्पतालों में व्यवस्थाओं के मामलों में ऐसा अक्सर देखने को मिलता है लेकिन मौजूदा हालातों में नोटंबदी के दौर से गुज़र रहे लोगों को दिक्कतें ज्यादा हो रही है ऐसे में अगर सरकारी अस्पतालों में भी उनको इलाज नहीं मिलेगा तो ज़ाहिर है कि हालात और गंभीर होंगे।