देहरादून। उत्तराखंड में बीजेपी की सरकार बने हुए तकरीबन छह महीने का समय हो चला है। ऐसे में ये जरूरी है कि बीजेपी के वादों की किताब को एक बार फिर से पलट लिया जाए। इस बात में संदेह नहीं है कि बीजेपी ने अपने किए कई वादे तय समय में पूरे नहीं किए हैं तो कई वादे ऐसे हैं जिन्हें घोषणा पत्र में लिखने के बावजूद वो ना पूरे करने का ऐलान कर चुकी है।
अब ऐसे में सवाल ये है कि बीजेपी के इन वादों का लेखा जोखा सरकार से कौन ले?
बीजेपी ने 2017 के चुनावों के लिए जो अपना दृष्टि पत्र जारी किया था उसके पेज संख्या चार पर किसानों का जिक्र है। इसी पेज की नीचे से पांचवीं लाइन में लिखा है कि सभी लघु और सीमांत किसानों का फसली ऋण माफ किया जाएगा। छह महीने के बाद इस घोषणा की परिणीति ये है कि त्रिवेंद्र सरकार ऋण माफी की योजना को सिरे से खारिज कर चुकी है। खुद त्रिवेंद्र रावत ये कह चुके हैं कि किसानों का ऋण माफ नहीं किया जाएगा।
घोषणा पत्र की इसी लाइन के नीचे की लाइन में लिखा गया है कि ‘सभी लघु और सीमांत किसानों को ब्याज मुक्त फसली ऋण दिया जाएगा’। सीना तान कर किए गए इस लिखित बयान का हालिया हाल ये है कि सरकार ने किसानों के लिए एक लाख तक का ऋण दो फीसदी ब्याज पर देने का ऐलान किया है। ब्याज मुक्त ऋण देने का वादा पूरा नहीं किया गया।
इसी पेज पर गन्ना किसानों को सरकार बनने के 15 दिनों के भीतर पूरा बकाया भुगतान करने का वादा किया गया है। सरकार ने गन्ना किसानों का बकाया भुगतान कराया तो है लेकिन ‘पूरा भुगतान’ का वादा पूरा नहीं हुआ है।
बीजेपी के घोषणा पत्र के पेज संख्या छह पर लिखा है कि सरकार छह महीनों के भीतर समस्त विभागों में रिक्त पदों व पदोन्नति से भरे जाने वाले पदों को प्राथमिकता के आधार पर भरा जाएगा। त्रिवेंद्र सरकार का ये वादा भी पूरा नहीं हुआ है। बीजेपी ने नए रोजगार सृजन के मसले पर बड़ी सफाई से अपने घोषणा पत्र में बचने का रास्ता बनाया है। बीजेपी ने लिखा है कि अगले पांच सालों में लाखों नए अवसर पैदा किए जाएंगे। हालांकि छह महीने बीतने के बाद भी ऐसा कुछ होता दिख तो नहीं रहा है।
2017 के घोषणा पत्र में बीजेपी ने प्रदेश के सभी परिवारों को धुआंमुक्त करने के लिए निशुल्क रसोई गैस देने का वादा किया है। इस क्षेत्र में भी फिलहाल सरकार कोई कदम नहीं उठा पाई है।
बीजेपी ने अपनी पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार पर भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे होने का आरोप लगाया था। भ्रष्टाचार को रोकने के लिए बीजेपी ने सौ दिनों के भीतर लोकायुक्त की नियुक्ति का वादा किया था। बीजेपी अपने घोषणा पत्र में लिखा ये वादा भी पूरी नहीं कर पाई।
बीजेपी सरकार के छह महीनों का कार्यकाल शुरुआती सुस्ती और बाद में कैबिनेट के सहयोगियों की रस्साकस्सी में ही बीतता दिखाई दे रहा है। त्रिवेंद्र रावत और उनकी कैबिनेट के फैसले भी ठीक से क्रियान्वित नहीं हो पा रहें हैं। ऐसे में घोषणा पत्र में लिखे वादे पूरा करने में हो रही अनदेखी भारी पड़ सकती है।