देहरादून- ऊची दुकान के फीके पकवान की कहावत यूं ही नही बनी होगी। डबल इंजन का दौर में भी पकवान मीठे नहीं हो पाए हैं। जी हा हम बात कर रहे है सूबे की अस्थाई राजधानी देहरादून के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल की। मौजूदा वक्त में दून अस्पताल दून मेडिकल कॉलेज का हिस्सा है बावजूद इसके इस अस्पताल को खुद ही ईलाज की दरकार है।
बदहाली के आलम मे जीती पहाड़ की स्वास्थ्य सेवाओं के दौर मे तकरीबन पूरे गढ़वाल से मरीज दून अस्पताल पर उम्मीद जताते हैं। उन्हें भंरोसा होता है कि दून अस्पताल में उनके मर्ज का ईलाज ढूंढ लिया जाएगा। लेकिन आजकल जब वो मीलों-मील का सफर कर देहरादून के दून अस्पताल पहुंचेंगे तो उनके हाथ ईलाज नहीं निराशा लगेगी।
दरअसल दून अस्पताल में आजकल डॉयलेसिस यूनिट और सिटी स्कैन दोनों ही खराब हैं। लिहाजा डायलिसिस की दरकार वाला मरीज को भी बाहर धक्के खाने पड़ रहे हैं और स्टीस्कैन की जांच करवाने वाले मरीज को भी निजी दुकानों में महंगी सेवा लेेने के लिए मजबूरी के साथ इंतजार करना पड़ रहा है।
हालांकि दून मेडिकल कॉलेज के प्रधानाचार्य डा. प्रदीप भारती का कहना है कि जल्द ही दोनों को सुधरवा लिया जाएगा। वैसे आपको बता दें कि ये दोनो चीजे दून अस्पताल मे आए दिन खराब रहती है। दिलचस्प बात ये है कि सूबे मे स्वास्थ्य महकमे की जिम्मेदारी खुद सीएम त्रिवेंद्र रावत उठाते हैं। बावजूद इसके ये हाल है, जबकि वे हर वक्त जीरो टॉलरेंस की बात करते हैं।