देहरादून : विश्व बैंक की मदद से ‘रिवर मार्फोलॉजीकल एनालसिस एंड डिजाइन ऑफ रिवर ट्रेनिंग एंड बैंक प्रोटेक्शन वर्क’ के तहत उत्तराखंड में अलकनंदा, भागीरथी, मंदाकिनी और काली नदियों के बेसिन का अध्ययन कराया जा रहा है।
अपर सचिव आपदा प्रबंधन सविन बंसल ने सोमवार को सचिवालय में पत्रकारों से बातचीत में बताया कि योजना के तहत इन नदियों के इर्द-गिर्द बसागत, खेती, पर्यावरण जैसे बिंदुओं का गहन अध्ययन दिसंबर तक पूरा हो जाएगा।
उन्होंने बताया कि चारों नदियों में 30 डेंजर जोन भी चिह्नित किए जाएंगे, जहां उपचार किया जाएगा। इसके अलावा वहां एक अर्ली वार्निग सूचना तंत्र भी विकसित किया जाएगा, ताकि किसी भी आपात स्थिति से निबटने में मदद मिल सके।
कुमाऊं में भी लगेंगे सिस्मोग्राफ
अपर सचिव बंसल ने बताया कि भूकंप के पूर्वानुमान के मद्देनजर अर्ली वार्निंग सिस्टम विकसित करने के लिए आइआइटी रुड़की की ओर से गढ़वाल में करीब 85 स्थानों पर सिस्मोग्राफ लगाए गए हैं। इसी प्रकार विश्व बैंक की मदद से कुमाऊं मंडल में भी सिस्मोग्राफ लगाए जाएंगे।
एडब्ल्यूएस को भूमि फाइनल
उन्होंने बताया कि राज्य के हर जिले में ऑटोमैटिक वेदर स्टेशन (एडब्ल्यूएस) के साथ ही स्नोगेज व रेनगेज के लिए भूमि फाइनल कर दी गई है। विश्व बैंक की मदद से मौसम विभाग इन्हें स्थापित करेगा।