उत्तरकाशी( सुनील मोर्य)– जिले में मोरी तहसील के गांवों में बुनियादी सहूलियतें वाली तकदीर की लकीरें अलग राज्य बनने के बाद भी नहीं बन पाई हैं। सेहत से लेकर तालीम तक हर जरूरी सहूलियत का इस इलाके में टोटा है। सातवे वेतन आयोग की सिफारिशों का लुत्फ लेने वाले सरकारी शिक्षकों ने इस इलाके के स्कूलों को तमाशा बना कर रख दिया है।
राजकीय प्राथमिक विद्यालय पाव तल्ला, जूनियर हाईस्कूल पाव तल्ला, प्राथमिक विद्यालय कासला,जूनियर हाईस्कूल फिताड़ी,जूनियर हाईस्कूल गंगाड़, जूनियर हाईस्कूल सिरगा, राइंका सांकरी तहसील के ऐसे स्कूल है जहां पढ़ने वाले बच्चों की तादाद पचास से कम नहीं है। बावजूद इसके इन स्कूलों में शिक्षकों का टोटा बरकरार है।
गजब तो ये है कि जीरो टॉलरेंस के दौर मे भी यहां कई ऐसे अध्यापक हैं जो बेहिचक नौनिहालों के भविष्य से खेल रहे हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि इस इलाके में कई ऐसे मास्साब तैनात हैं जो महीने में सिर्फ एक बार ही विद्यालय में दाखिल होते हैं और पूरे महीने की हाजिरी लगाकर चल देते हैं।
दुर्गम इलाकों मे शामिल मोरी तहसील के कई ग्रामीणों ने अपने इलाके के स्कूलों के हालात से जिलाधिकारी को ज्ञापन देकर रूबरू करवाया और कई ऐसे अध्यापकों की शिकायत की जो हाजिरी लगाना ही अपना फर्ज समझ रहे हैं।
वहीं ग्रामीणों ने इलाके में तैनात शिक्षकों पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि क्षेत्र के इन विद्यालयों में जो शिक्षक तैनात हैं, उनमें अधिकांश शिक्षक ठेकेदारी, राजनीति व जड़ीबूटी के कारोबार में अधिकांश लिप्त है। जिससे स्कूलों में पठन पाठन पूरी तरह प्रभावित हो रहा है।
जिला मुख्यालय पहुंचे ग्रामीणों ने जिलाधिकारी डा. आशीष चौहान से पहाड़ की पीड़ा समझने वाले शिक्षकों की नियुक्ति कराने की मांग करते हुए कहा कि इसका असर उन बेटियों पर पड़ रहा है जिनके अभिभावक अपनी गरीबी की वजह से अपनी बेटियों को शहर के स्कूलों मे नहीं भेज पा रहे हैं। मजबूरन गरीबों की बेटियों को स्कूल छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।
ऐसे में सवाल उठता है कि जब जीरो टॉलरेंस का दौर है तो अध्यापकों पर लगे आरोप भी तो भ्रष्टाचार के दायरे में आता है। सवाल ये भी है कि आखिर सरकारें 17 साल में उस वजह को क्यों नहीं खोज पा रही हैं जिसकी वजह से खूबसूरत और सेहत से भरपूर पहाड़ी इलाके से शिक्षकों और सरकारी डाक्टर तौबा कर रहे हैं।