देहरादून- सिस्टम के नजरिए से दूरूह भौगोलिक परिस्थितियों वाले उत्तराखंड में सेहत का सवाल सरकारों के लिए विष बुझे नश्तर के समान हो गया है। जब से राज्य बना है तब से लेकर अब तक सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं में कोई भी इजाफा नहीं हुआ है। कोई भी सरकार ऐसा माद्दा नहीं दिखा पाई कि धरती के भगवान स्वेच्छा से सरकारी अस्पतालों में अपनी सेवा देने को तैयार हो जाएं।
पहाड़ी राज्य के हर सरकारी अस्पतालों में सहूलियतों का टोटा है। कहीं डॉक्टर नहीं तो कही मशीने नहीं, कहीं नर्स नहीं तो कही बिल्डिंग नहीं।जिस राज्य के पहाड़ों को सरकार हिलस्टेशन के नजरिए से देखती है उस राज्य का हाल ये है कि सहूलियतों के आभाव में तीन सौ से ज्यादा गांव को घोस्ट विलेज पुकारा जा रहा है।
राष्ट्रीय स्तर पर आई अभी ताजा रिपोर्ट ने तो सरकारों की कलई खोल कर रख दी। रिपोर्ट ने उत्तराखंड को स्वास्थ्य सुविधाओं के सवाल पर निचले पायदान पर आंका है। लिहाजा सूबे की मौजूदा सीएम त्रिवेंद्र रावत ने इसके लिए पिछली सरकारों को सिर इसका ठीकरा फोड़ा है।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने दावा किया है कि राज्य में उनकी सरकार बनने के बाद स्वास्थ्य सेवाओं में खासा सुधार हुआ है। मुख्यमंत्री ने कहा है कि सरकार ने कई दूरस्थ इलाकों में डॉक्टरों की तैनाती की है। ऐसे इलाकों में अब आम लोगों को स्वास्थ्य सेवा मिल पा रही है। ये दावा मुख्यमंत्री ने गढ़वाल सभा के 68 वें स्थापना दिवस के मौके पर नगर निगम मे आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कही।