चंपावत- उर्दु के शायर आजर साहब के एक शेर की एक लाइन है- हम अपने हौंसलों को इस तरह से आजमाते हैं कि, पत्थर के शहर में आईनों का घर बनाते हैं। कुछ उसी अंदाज में चंपावत जिले के एक पूर्व फौजी ने भी आपने हौंसले को आजमाया है।
कभी बिहार के दशरथ मांझी ने अपनी पत्नी के प्यार में पहाड़ को काट कर रास्ता बनाया था। इधर उत्तराखंड के चंपावत जिले मे पूर्व फौजी बृजेश बिष्ट ने पूरे गांव की तकलीफ दूर करने के लिए डेढ किलोमीटर रास्ता बना डाला। मजबूत पहाड़ को अपने हौसलें से चुनौती देने वाले बृजेश आखिरकार जीत गए।
दशरथ मांझी ने भी पहाड़ को अपने हौंसले से परास्त किया और इधर बृजेश ने अपने हौसले और मेहनत से उत्तराखंड की अब तक हर उन सरकारों को आईना दिखाया जो सिर्फ राग पहाड़ी अलापती रही। जबकि गांव बुनियादी सहूलियतों के लिए तरशते रहे और गांव वाले मजबूरन पुरखों की जमीनों को अलविदा कहते रहे।
बहरहाल फौज से रिटायर हो चुके बृजेश के उस हौसले को सलाम जिसने अपनी मेहनत से ही अपने गांव तक के लिए ऐसा रास्ता बना दिया जिस पर आज हल्के वाहन आसानी से कुलाचें भर रहे हैं। हालांकि अभी रास्ता कच्चा है लेकिन भूतपू्र्व फौजी बृजेश की तीन साल की मेहनत की गवाही दे रहा है। फौज मे रह चुके बृजेश की तमन्ना थी कि टनकपुर-तवाघाट राष्ट्रीय राजमार्ग से उसका गांव पुष्पनगर तोक भी जुड़ जाए। लेकिन उसकी हसरत सरकारी सिस्टम के आगे दम तोड़ती रही।
ऐसे में मजबूत इरादों के बृजेश ने खुद ही रास्ता बनाने की ठान ली। जब तक फौज में रहे उन दिनों छुट्टियों में और जब अब फौज से रिटायर हो गए तो तीन साल की मेहनत से बृजेश ने पुष्पनगर तक ऐसा रास्ता बना दिया जिस पर हल्के वाहन आसानी से जा रहे हैं। हालाकि रास्ता अभी कच्चा है लेकिन गांव से पक्की सड़क तक पहुंचना आसान हो गया है।
बृजेश कहते हैं गांव में सहूलियत आसानी से मिल जाती तो पलायन की तकलीफ आज इतनी विकराल नहीं होती। गांव की पैदावार को बाजार मिलता और हर परिवार के पास नगद आमदनी होती। बहरहाल बड़ा सवाल ये है कि अगर सरकार की आंख में शर्म का पानी बचा होगा तो बृजेश के हौसलें को सलाम करेगी और बृजेश की मेहनत को सजाने संवारने का काम करेगी।