उत्तरकाशी- आखिरकार लोक की जान ले कर ही माना तंत्र, इस लोकतंत्र में। मोरी में लिवाड़ी गांव के 60 वर्षीय अतर सिंह की मौत के लिए सिस्टम की वो बेरूखी जिम्मेदार है जिसने अलग राज्य बनने के बाद भी 7 मुख्यमंत्री तो बनवा दिए लेकिन 22 किलोमीटर की सड़क नही बना सकी। पिछले कई दिनों से अज्ञात बीमारी की चपेट में आए लिवाड़ी गांव में सड़क से दूरी का खामियाजा अभी कितनी जानें और भुगतेंगी कहा नही जा सकता। बहरहाल पीलीया और बुखार से पीडित 60 साल के अतर सिंह सड़क और स्वास्थ्य की सहूलियत से महरूम गांव को छोड़कर सदा के लिए चले गए हैं।
वक्त पर इलाज मिल जाता तो अतर सिंह बुखार और पीलिया जैसे मामूली बीमारी से बच जाते। लेकिन बीमारी को पहचानता कौन, और क्या दवा खानी है इसे बताता कौन ? जब इलाके में डॉक्टर साहब ही तैनात न हों। सड़क होती तो वे खुद शहर के अस्पताल तक आ जाते लेकिन जब सड़क ही नही थी तो उन्होंने रास्ते मे दम तोड़ना ही था।
वहीं लिवाड़ी गांव की दो बेटियां वायरल से पीड़ित हैं जिनका इलाज पुरोला के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में चल रहा है। बताया जा रहा है कि पहले मासूम बच्चियों को पीठ पर लाद कर 22 किलोमीटर पैदल जखोल लाया गया और उसके बाद मोरी के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र मोरी ले जाया गया जहां से उन्हें पुरोला रैफर किया गया है जहां उनका इलाज चल रहा है। खैर सवाल ये है कि आखिर वो हवाई एंबुलेंस कहां गई जिसके बारे में कहा जा रहा था कि दूर-दराज के क्षेत्रों में वक्त पर ईलाज देनें में कारगर साबित होगी, और उससे भी बड़ा सवाल ये है कि आखिर पहाड़ों से साहब लोगों की ये बेरूखी कब तक जारी रहेगी ! ये सिर्फ एक गांव की नही, कई पहाड़ी गांवों की तस्वीर ऐसी ही डरावनी है।