देहरादून – कांग्रेस सरकार को बचाने के चक्कर में अपनी विधायकी कुर्बान करने वाले घनसाली के पूर्व विधायक भीमलाल आर्य का राजनीतिक भविष्य गहरे संकट में फंस गया है। मुख्यमंत्री हरीश रावत पर वादाखिलाफी का आरोप लगाने वाले आर्य फिलहाल बीजापुर कैंप ऑफिस के बाहर धरने पर बैठे है। हरदा को पितातुल्य बताने वाले आर्य बिना पानी पिए अब हरीश रावत को जमकर कोस रहे है। कुल मिलाकर आर्य का राजनीतिक भविष्य हिचकोले खा रहा है। यानि हरदा प्रेम में फंसे आर्य के बारे में ये कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि वो अब न घर के रहे न घाट के।
आईए हम आपको बताते है कि भीमलाल आर्य ने गत पांच सालों में अपने रूप कैसे कैसे बदले है। समर्पित सिपाही तो वो कभी रहे ही नहीं, अलबत्ता 2012 में जब वो भाजपा से घनसाली विधानसभा सीट से जीते तो भाजपा का ही गुणगान कर रहे थे, तब वो अपने आप को भाजपा का समर्पित सिपाही बताने से नहीं थकते थे। असल में हरदा प्रेम तो उनका बाद में जागा। इससे पहले ही साल 2012 में उन्होंने कांग्रेस के तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा से भीमताल में ही गलबहियां करनी शुरु कर दी थी, अपने लिए विधानसभा सीट तलाश रहे बहुगुणा ने तब भीमलाल को कांग्रेस में शामिल करने की जुगत भिड़ानी शुरु कर दी थी।
तमाम उतार चढ़ाव के चलते भीमलाल ने बहुगुणा के कार्यकाल में भाजपा का दामन नहीं छोड़ा। कई सार्वजनिक स्थलों पर कांग्रेस से नाता न जोड़ने का कोई मतलब का नारा देकर वो फिर भाजपा के निष्ठावान कार्यकर्ता बनने का दम भरते रहे। भीमलाल तब ये कहने से भी नहीं चूके कि भाजपा ही उनकी माई बाप है। साल 2014 में जब हरीश रावत प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो उसके कुछ समय बाद ही भीमलाल ने फिर रंग दिखाने शुरु कर दिए। एक तरीके से ये कहना गलत नहीं होगा कि तब भीमलाल भाजपा में बागी की भूमिका में आने लगे थे। ये वो ही समय था जब भीमलाल सार्वजनिक स्थलों पर भी हरीश रावत का गुणगान करने से बाज़ नहीं आ रहे थे। ये प्रेम खुलकर तब सामने आया जब एक सार्वजनिक कार्यक्रम में भीमलाल ने रावत की चप्पल उठाने से भी गुरेज़ नहीं किया।
2016 में यही आर्य हरदा को पितातुल्य बताने लगे। ये वो ही वक्त था, जब आर्य अपनी पार्टी भाजपा के पूरी तरह खिलाफ हो चुके थे। इतना सब होने पर भाजपा ने उन्हें निलंबित कर दिया। हद तो तब हो गई जब राष्ट्रपति शासन के दौरान सरकार बचाने के लिए 10 मई को हुए बहुमत परीक्षण में भीमलाल ने पार्टी का विहिप तोड़ दिया। यहां उन्होंने कांग्रेस के पक्ष में मतदान किया और अपनी विधायकी से हाथ धो बैठे। इस ज़बरदस्त प्रेम की प्रेमकथा को बामुश्किल 100 दिन ही बीते थे, कि 101 वें दिन कांग्रेस पर भारी पड़ गए। अब वो ही आर्य न सिर्फ हरीश रावत को बल्कि कांग्रेस को भी अपना दुश्मन नबंर-1 बता रहें हैं। घनसाली को ओबीसी क्षेत्र में शामिल करने को लेकर भीमलाल हरदा को बेईमान बता रहें हैं। हरीश रावत पर हमला करते हुए वो कहते है कि हरदा ने उनसे वादा किया और अब मतलब निकल जाने पर मुझे दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल फेंक रहें हैं। अब वहीं आर्य कहते है कि भगवान ने चाहा तो हरीश सरकार को वो अपने आंसुओं से डुबा देंगे।
कुल मिलाकर आर्य जिस रास्ते पर चल पड़े थे, उसका अंजाम तो ये होना ही था। धोखा देना भीमलाल का पुराना शगल है। पहले उन्होंने भाजपा को धोखा दिया और फिर पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा को। अब जब उन्हें धोखा मिला तो हाय हाय चिल्ला रहें हैं। कहते है कि इतिहास अपने आप को दोहराता है। आर्य का भविष्य क्या होगा? ये तो वक्त ही बताएगा। फिलहाल ये कहना गलत नहीं होगा कि अब आर्य न घर के रहे न घाट के।