रूद्रप्रयाग- 15 रूपए किलो बिक रही है भेड़ की असली गरम ऊन । ये जुल्म नहीं, तो क्या है ! 6 महीने की मेहनत और मेहनताना महज 15 रूपए। जी हां यकीन मानिए ये कड़वा सच है इसी प्रदेश के रूद्रप्रयाग जिले के भेड़ पालकों का खासकर उखीमठ से सटे गांवों में। गांव के भेड़पालकों की भेड़े पिछले 6 महीने से बुग्यालों मे पालसियों की देखरेख में चुगकर खूब मोटी ताजी होकर लाया या लो मनाने आई। जहां बुग्यालों से नीचे और गांव से ऊपर उनकी ऊन उतारी गई। सदियों से चली आ रही परम्परा को निभाया गया लेकिन इस बार भेड़पालकों के चेहरे पर वो रौनक नहीं दिखाई दी जो पहले रहा करती थी।
उसकी वजह है ऊन के दाम। भेड़ों से मिलने वाली असली ऊन का दाम महज 15 रूपए लग रहा है। भेड पालक भेड़ की ऊन बेचकर भी पालासियों की दिहाड़ी नही निकाल पा रहे हैं। खबर है कि इस बार लाया या लो त्यौहार तो जरूर मनाया गया लेकिंन बुझे मन से कोई भी अपनी भेड़ों की ऊन को इकट्ठा कर गांव वापस नहीं लाना चाहता क्योंकि एकत्र ऊन को इकट्ठा कर घर भेजने का खर्च इतना बैठेगा कि 15 रूपए प्रति किलो के दाम पर बिकने वाली ऊन से हासिल नही हो पाएगा। अब सोचिए ये अन्याय नही तो क्या है। काश उत्तराखंड कोटे के केंद्रीय कपड़ा राज्य मंत्री जी ये खबर सुन पाते !गजब है 16 साल में इस राज्य ने 7 मुख्यमंत्री जरूर बदले लेंकिन खुद के लिए कुछ नही कर पाया। अगर स्वरोजगार करके 6 महीनें में 15 रूपए ही हाथ लगने हैं तो फिर तो उपनल की दिहाड़ी बढिया है।