अगर बात की जाए जनता की सुरक्षा की या बात की जाए हर त्यौहार, मेले, रैली में सुरक्षा की तो बस एक ही नाम याद आता है वो है पुलिस..कोई भी कार्यक्रम से पहले किसी नेता या चुनाव के आने से घंटो पहले पुलिस को मुस्तैद कर दिया जाता है और ये भी आदेश दिया जाता है कि समय से 3 घंटे पहले निर्धारित ड्यूटी स्थान पर पहुंचे लेकिन कभी उस इंसान के बारे में सोचा है जो सर्दी या गर्मी, रात हो या सुबह बिना कुछ देखे ड्यूटी पर तैनात रहता है.
नहीं ना..आपकों बता दें राज्य गठन के 17 साल बीत जाने के बाद पुलिस विभाग में पुलिसकर्मियों के लिए आवास व्यवस्था में केवल 5 प्रतिशत की ही बढ़ोतरी हुई है जो राज्य बनने के दौरान 13 प्रतिशत थी और अब 18 प्रतिशत है. अधिकारियों का ये मानना है कि कठिन ड्यूटी के बाद पुलिसकर्मी के लिए आवास की व्यवस्था होनी चाहिए. पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो का मानना है कि 70 से 80 प्रतिशत कर्मचारियों के लिए सरकार द्वारा आवास की व्यवस्था सुनिश्चित होनी चाहिए. लेकिन प्रदेश में 18 प्रतिशत ही पुलिस कर्मचारियों के पास सरकारी आवास हैं. जो कि राज्य गठन के टाइम में 13 थी.
उत्तराखंड पुलिस विभाग की स्थिति का पता इस बात से लगाया जा सकता है कि उत्तराखण्ड हाइटेक पुलिस 17 साल में महज़ 5 प्रतिशत आवासों की संख्या में बढ़ोतरी कर सकी है.
रवानगी और आमद में जिंदगी बीत जाती
एक पुलिस वाले को घर जाने का समय नहीं मिलता, लेकिन एक पुलिसकर्मी की उम्र रवानगी और आमद कराने में गुजर जाती है. एक जगह ढंग से एडजस्ट ही नहीं हो पाता की उसे दूसरे जगह भेज दिया जाता है और दूसरी जगह सेटल होने में टाइम लगता है.
ड्यूटी में न खानी न पानी
मेरी करीबी ने मुझे बताया कि ड्यूटी के दौरान खाना तो छोड़ो पानी भी पीने को मिल जाए तो वहीं बहुत है… और वहीं अगर प्यास लगी है और हम ड्यूटी की जगह छोड़कर अगर पानी पीने चले गए और ड्यूटी की जगह कुछ गड़बड़ हो जाए जी भर के सुनने को मिलता.
खाकी का दर्द
हम अक्सर बड़ें आसानी से कह देते है कि पुलिस वाले अपनी ड्यूटी इमानदारी से नहीं करते लेकिन ये कभी नहीं सोचते सर्द रातों को कई बड़ी उम्र के पुलिसर्कर्मी या तो ट्रेफिक को हटवा रहे होते है या बीच सड़क में गाड़ियों को निकालने की कोशिश में लगे रहते है लेकिन जनता को बस अपनी गाड़ी और अपना घर पहुंचना दिखता है. खाकी का दर्द नहीं. उनका भी घर-परिवार है, उनका भी मन करता है कि घर जाकर गर्म-गर्म चाय पिएं और बिस्तर में लेटे लेकिन जनता को सिर्फ पुलिस कर्मियों पर अपनी भड़स निकालनी होती है और खुद किस कदर ट्रेफिक नियम तोड़ रहे ये कर्तई नहीं दिखता.
और यहां पुलिस मुख्यालय में बैठे अधिकारी बजट का रोना रो रहे हैं और एडीजी प्रशाशन राम सिंह मीणा ने बताया कि केंद्र से आधुनिकीकरण के नाम पर मिलने वाले बजट में कटौती कर दी गई है. इसकी वजह से अब राज्य सरकार से थाना चौकी और आवासों के निर्माण के लिए आर्थिक मदद मांगी जा रही है.