देहरादून- जी हां आप यकीन माने या न माने लेकिन आंकड़ों का सच यही है कि, देवभूमि उत्तराखंड के पौड़ी और देहरादून जिले में बेटियां महफूज नहीं हैं।सूबे के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने जब सचिवालय में गर्भावस्था पूर्व प्रसव पूर्व निदान की समीक्षा की तो लिंगानुपात के आंकड़ों को देखकर उनकी रूह कांप गई। बहां बेटियां बच ही नहीं रही हैं ऐसे में पढ़ने का सवाल ही पैदा नहीं होता। यानि सरकारी नारा पौड़ी और पिथौरागढ़ में सिर्फ नारा भर है।
मुख्यमंत्री ने पिछले दो दशकों में महिला लिंगानुपात में लगातार आ रही गिरावट पर भारी चिंता जाहिर करते हुए तत्काल प्रभाव से पौड़ी और पिथौरागढ़ जिले का सर्वे कराने के आदेश दिए। सीएम ने कहा कि दोनो जिलों की स्थिति बेहद खतरनाक दिखाई दे रही है। लिहाजा कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए टास्क फोर्स तैयार की जाए।टास्क फोर्स का कार्य निगरानी करना होगा। इसके अतिरिक्त विजिलेंस एवं मुखबिर व्यवस्था का भी प्रयोग किया जाए।
गौरतलब है कि हर पांच साल बाद जारी होने वाली लिंगानुपात रिपोर्ट में अकेले पौड़ी की तस्वीर बेहद खतरनाक है। साल 2011 में प्रति हजार पर 684 बेटियां दर्ज हुई जबकि साल 2016 में इस दर में और घटोत्तरी हुई अब प्रति हजार 705 बेटियां ही जिंदा हैं। आंकड़े जाहिर कर रहे हैं कि पौड़ी और पिथौरागढ़ बंजर जिंदगी की ओर बढ़ रहे हैं।
बहरहाल मुख्यमंत्री रावत ने मामले की संजीदगी को भांपते हुए अधिकारियों को कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए लगातार जागरूकता अभियान चलाने के निर्देश दिए हैं, ताकि बेटी की महत्ता आम जनता को समझ में आए। जाहिर सी बात है कि, जब दो जिलों में बेटी बच ही नहीं रही हैं तो पढ़ेगी कैसे ? ऐसे में जरूरत है बेटियों को बचाने की ताकि ‘मां’ जिंदा रह सके और आंकड़ों की हकीकत से जो कलंक लग रहा है उस पर अंकुश लग सके।