चंपावत –10 साल से भी ज्यादा का अर्सा गुजर चुका है बिजली की लाइन बिछे हुए लेकिन चंपावत के नेपाल सीमा से सटे गांवों मे आज भी रात में अंधेरा कायम है। मटकांडा,मोस्टा, बकोड़ा,सौराई जैसे गांव के ग्रामीणों की आंखे बिजली के इंतजार में पथरा गई हैं।
बिना बिजली के आदम युग में जी रहे जिले के ग्रामीण दरबदर जैसी जिंदगी जी रहे हैं। स्कूलों में कंप्यूटर है लेकिन बिना बिजली के छात्रों को कैसे बताया जा कि कंप्यूटर ऐसे काम करता है। टेलीविजन किस बला का नाम है गांव के लोग नहीं जानते जिनके यहां हैं उनके लिए ये महज कबाड़ है या फिर एक ऐसा डिब्बा जिसने घर की जगह हथिया रखी है।
करीब 11 साल पहले इन गांवो के लिए रोशनी का इंतजाम हुआ था। बिजली की लाइन बिछाई गई,ट्रांसफार्मर भी लगाए गए लेकिन गांव वालों को लाइट नही दी गई। चुनावी मौके पर जरूर बिजली मुद्दा बनता है लेकिन फिर बिजली हासिए पर चली जाती है। गांव वालो को समझ में नही आ रहा है कि यहां बिजली कब आएगी और किसकी मेहरबानी से आएगी। हालांकि अब गांव में विद्युत नियामक आयोग में शिकायत दर्ज करवाने की बात भी हो रही है। देखते है गांव कब तक रोशन होते हैं। ये अन्याय नही तो क्या है खाना तैयार है मगर खाने नही देते।